Friday, June 26, 2009

माई का लाल जयकिशन मर गया

माइकल जैक्सन नहीं रहे. वह सितारा जो फर्श से अर्श तक गया था, और वापस फर्श पर पडा था हमेशा के लिए खो गया. पर भारत में इतना बावेला क्यों? शास्त्रीय संगीत पर सर हिलता है, पश्चिमी संगीत पर पैर. हर इंसान का एक सर है, दो पैर हैं. अधमी कह लो, ओछा कह लो पर लोकतंत्र में संख्या बल पर दुनिया के दिलों पर राज करने का मेंडेट माइकल जैक्सन को मिला था. ये हंगामा इसलिए बरपा है कि माइकल जैक्सन के चाहने वाले बहुत ज्यादा हैं, उनके लिए पागलपन दुनिया के कोने कोने में है और इस सच से कोई इनकार नहीं कि जैक्सन का नाम उन चंद सितारों में है, जिसे भाषा, रंग, देश और नस्ल की सीमाओं को लाँघने वाली मुहब्बत मिली. पश्चिमी मनोरंजन फलक पर उभरा वह सबसे बड़ा सितारा है जिस की रौशनी ने पूरी दुनिया की रातों पर राज किया और दिनों पर दमका.

स्वर्गीय एल्विस प्रेस्ले पश्चिम में उनसे ज़्यादा प्रभाव रखते हैं, पर पूरब तक धौंस तो माइकल जैक्सन की ही रही है. बीटल्स के चाहने वाले यहाँ भी बहुत हैं और वहां भी बहुत, पर लोकप्रियता के पैमाने पर माइकल जैक्सन को मात नहीं दे सकते. गाँव-गाँव की मिटटी की दीवारों पर ठुके थे माइकल जैक्सन के पोस्टर. अस्सी और नब्बे के दशक में मुफस्सिल कस्बों में ज़मीन पर फ़िल्मी और धार्मिक पोस्टरों के बीच एक आदमी टेढा पडा रहता था और बेचने वाले और खरीदने वाले दोनों को मालूम था, वह कौन है. भारत में यह चमकीले पोस्टर अब भी छोटे शहरों के सलून और चाय की गुमटियों की शोभा बढाती हैं. गाँव के किशोर दो पोस्टर ज़रूर पहचानते हैं, अर्नाल्ड श्वार्जनेगर और माइकल जैक्सन. पहले वाले उनकी पसंद हैं जो शरीर को गठीला बनाने के लिए दंड पेलते हैं, और दूसरे वाले उनको जो शरीर को लचीला बनाने के लिए मूनवॉक करते हैं. अपनी अपनी पसंद, पर टेप रिकॉर्डर पर से आवाज़ आती थी थ्रिलर के बूम बूम की और चाहे एक शब्द पल्ले ना पड़ता हो, पर लब गुनगुनाते थे और पाँव थिरकते थे. एक जादू सा था, जो शब्दों को निरर्थक कर शोर में अर्थ भर देता था. एक कहानी जो सात समंदर पार शुरू हुई और सब को डुबो गयी थी अपने रस में.

माइकल १९९६ में भारत आये थे. मुंबई में उनका स्वागत और सत्कार बाल ठाकरे तक ने किया था. राज ठाकरे जो लोगों को मुंबई में हिंदी बोलने पर पीटते हैं वह एक अमेरिकन एक्सेंट में अंग्रेजी बोलने वाले के दर्शन के लिए सहार एअरपोर्ट पर क्यू में खड़े थे. और फिर भारत ने उस पर ऐसे प्यार उडेला था जैसे वह इसी मिटटी का लाल हो, माइकल जैक्सन नहीं माई का लाल जयकिशन हो. जटिल वस्त्र धारी और जटिलतर व्यक्तित्व के मालिक माइकल ने कुर्ता धारण किया था और हमारे सादे वस्त्र की बड़ी प्रशंसा की थी. पर एक अश्वेत बालक का मनोरंजन की दुनिया के शिखर पर पहुंचना प्रेरणा देता था ऐसे हर कौम को जो अभी भी श्वेत लोगों की प्रभुता के तले कुचले पड़े थे. अपने देश में देख लीजिये, गिने चुने साँवले लोग ही हिन्दी फिल्म या टीवी की दमक में टिक पाए हैं. दक्षिण ने इस रंग भेद की दीवार को भले छेदा हो पर मुंबई की फ्लिम इंडस्ट्री में गोरे छोरे ही छाये हैं. उसी दक्षिण में प्रभु देवा नाम के एक युवक ने माइकल को द्रोणाचार्य मान कर अपने नृत्य को ऐसे तराशा कि फिल्मस्टार बन गए. सुल्तानपुर का गोरख भले प्रभु देवा नहीं बन पाया हो पर अपने मोहल्ले में माइकल जैक्सन कि ख्याति पा गया था. ऐसे अनेक अनाम, अनजान किशोर मुंबई से लेकर मिदनापुर तक सड़क पर ऐसे चलते थे जैसे उनके पाँव तले ज़मीन सरक रही हो.

तब भी जब उनका आदर्श सफलता की फिसलन भारी ज़मीन पर फिसल रहा था. ब्लैक ऑर व्हाइट गाने वाला वह शख्स खुद ब्लैक से व्हाइट हो रहा था. अगाध संपत्ति और अपार लोकप्रियता सर पर ऐसे चढी की मानसिक विक्षिप्तता के लक्षण उभरने लगे. प्लास्टिक सर्जरी ने चेहरा बिगाड़ दिया और यौन शोषण के आरोपों ने ख्याति खराब कर दी. पर प्रशंसक अब भी उनकी तरह कपडे पहने, नृत्य करते उनके प्राइवेट इस्टेट नेवरलैंड और अदालत के बीच उनकी एक झलक पाने को बेचैन रहते. आंसू बहाते और अपने व्यक्तिगत भगवान् के दुर्दिन के ख़त्म होने का इंतज़ार करते. हाल में खबर आई कि इंतज़ार की घडियां ख़त्म होने वाली थी. माइकल जैक्सन एक धमाकेदार वापसी करने वाले थे. लन्दन से एक वर्ल्ड टूर का सिलसिला शुरू होने वाला था. पर गुरूवार को इस गुरु की घडियां ख़त्म हो गईं. जादूगर अपनी अंतिम आइटम के पहले ही छू-मंतर हो गया. एक दिल के दौरे को करोडों दिलों ने महसूस किया. उनके प्रशंसक उसकी दवा अब थ्रिलर के संगीत में ढूँढेंगे, जिसमें एक बिल्ली जैसी आवाज़ में कोई चीखेगा तो पैर ज़मीन पर फिसलने लगेंगे और शरीर मानों चाँद पर चल रहा होगा, एक सितारे को अपनी आँख में बसाए.