Friday, April 23, 2010

हसीना का पसीना और पॉकेटमारों की चाल

हमारे देश के मेले मजमों में, बड़े शहरों के बस स्टैंड या रेलवे स्टेशनों पर उचक्के-उठाईगीर गैंग बना कर काम करते हैं और अगर कोई पकड़ा जाए तो उसको छुड़ाने का भी उनका अपना देसी तरीका होता है. अगर किसी की जेब तराशते कोई धरा गया और गैरमजरुआ धुनाई की संभावनाएं प्रबल हो गईं तो उसके साथी उसको बचाने के लिए उसी पर पिल पड़ते हैं. उसे तमाचे रसीद करते हैं और कान पकड़ कर ये कहते खींचते चलते हैं कि चलो पुलिस थाने में तेरी मरम्मत करवाता हूँ. उसके शिकार और पब्लिक धुनाई में भागीदार हाथ मलते खुश होते हैं कि चोर पुलिस के हत्थे चढ़ गया. उनको भनक तक नहीं लगती कि मौसेरे भाई उसे बचा ले गए. कुछ माँ बाप भी ऐसा करते देखे जाते हैं अगर लाडला किसी गैर घर का शीशा तोड़ते पकड़ा जाए. वे हलके हाथों से अपने बच्चे को खुद मारना पसंद करते हैं ताकि पड़ोसी की बुरी नज़र और निर्मम हाथ उस पर ना पड़ें.

क्रिकेट के अभिभावक अपने लाडले ललित पर ऐसे पिल पड़े हैं मानो सारा गुनाह एक मोदी का है. तीन साल से उसके चेहरे, कपड़ों और हाथों से शीरा रिस रहा था पर उसके माई-बाप और मौसेरे भाइयों को मानो भनक ही नहीं थी कि मालपुए की हांडी के गपतगोल होने में उसका हाथ है. वह ना सिर्फ खुद भकोस रहा था बल्कि उसने अपने सखी-सहेलियों के लिए विशाल भंडारे का आयोजन कर रखा था. जब सरकार के डंडा का जागरण हुआ तो बीसीसीआई का लालित्य देखिये, सारा ठीकरा आइपीएल पर फोड़ रहे हैं. आईपीएल कोई स्वयम्भू चमत्कार नहीं, बीसीसीआई की संतान है. उसमें किस किस का कितना माल कहाँ से लगा है, सब का हिसाब भी बीसीसीआई को मालूम रहा है. बीसीसीआई कहती है कि वह बिना ललित मोदी की मर्ज़ी के उनको निकाल फ़ेंक सकती है. ये गुस्सा फर्जी है क्योंकि अपनी खुदगर्जी के लिए किसी की मनमर्जी तीन साल चलने दी और जब सांच की आंच आई तो लौ मोदी की और कर दी.
इंडिया सीमेंट के मालिक एन. श्रीनिवासन बीसीसीआई के बड़े अधिकारी हैं और उनकी एक टीम भी है. क्या यहाँ टकराव नहीं? राजस्थान रॉयल्स की टीम के सारे एनआरआई हैं यह तो सबको मालूम था, पर क्या चेलाराम की पहचान बीसीसीआई के गुरु-घंटालों से छुपी थी? किंग्स इलेवन में मोदी के दामाद ऊंगली क्रिकेट खेल रहे थे, यह भी सब को पता था. फर्क इतना था जनता क्रिकेट में मस्त थी, सुस्त सरकार खुद में व्यस्त थी. थरूर अगर नौसिखिए नहीं होते तो क्रिकेट के भ्रष्टाचार की इतनी बड़ी सीख से सभी महरूम रह जाते. प्रफुल पटेल कहते हैं कि वह अपने मंत्रिमंडल सहयोगी शशि थरूर को एक टीम दिलवाने में मदद कर रहे थे. जो ईमेल पटेल की ऑफिस से थरूर को गया उसमें ऐसे आंकड़े थे कि थरूर डर जाएँ क्योंकि उसमें अगले दस साल तक करोड़ों के घाटे का सौदा दर्शाया गया था. वह थरूर की मदद कर रहे थे या उन्हें भय से भगा कर बेटी पूर्णा के मित्र ललित मोदी की मदद कर रहे थे. अगर टीम लेना इतना घाटे का सौदा है तो फिर डेढ़ हज़ार करोड़ कुर्बान करने वाले सुब्रत राय सहारा सौ फ़ीसदी सौदाई हैं. घाटे के सौदे के लिए बोली लगाई जाती है, ये तो हमें मालूम ही नहीं होता. सरकारी एजेंसियां तो तीन साल से हाथ पर हाथ धरे बैठी थीं.
भला हो उस ट्विट्टर का जिसकी चूँ-चूँ से क्रिकेट के मैदान से लेकर लोक सभा तक थू थू हो रही है. अगर शशि थरूर सुनंदा को पुश कर पाते और ललित मोदी थरूर को खुश कर पाते तो आज थरूर अपनी सीट पर होते और मोदी अपनी पुरानी हीट पर. सुनंदा की स्वेट इक्विटी अर्थात हसीना का पसीना सत्तर करोड़ का क्यों है, ये ट्वीट नहीं होता तो सब स्वीट होता. आज सबके चेहरे पर स्वेट है, और इक्वीटी इन्वेस्टिगेट हो रही है. एक ट्वीट ने खेल ही बदल डाला, खेल खेल के पन्ने पर रहा और खेल के पीछे का खेल फ्रंट पेज न्यूज़ बन गया.
वरना आज अखबार में आईपीएल होता पर बात देश के दो हीरे सचिन और धोनी के भिडंत के बारे में होती, ना इस की चिंता कि क्रिकेट के कोयले की खान में कौन काला होने से बचेगा. तीन साल में पहली बार इंडियन प्रीमियर लीग की ट्राफी किसी इंडियन के हाथ में होगी, यही सोच कर हम फूले नहीं समा रहे होते. पहली बार वार्न ने उठाया, दूसरी बार गिली ने, इस बार सचिन या धोनी, किसी के हाथ हो, ये जीत स्पेशल होना तय थी. पर हुआ क्या? एक नूराकुश्ती जिसकी दो पार्टियां हैं: बीसीसीआई और बीसीसीआई. बीसीसीआई क्रिकेट पर कंट्रोल करती है पर उस पर कंट्रोल कुछ गिने चुने मठाधीशों का है. बीसीसीआई कहेगी उसका एक लोकतान्त्रिक संविधान है. उस लोकतान्त्रिक संविधान की पोल खोलनी हो तो ललित मोदी के बीसीसीआई में एंट्री की कहानी खोल लीजिए. तब राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने आईएएस अफसर संजय दीक्षित को मोदी को नागौर के रास्ते राजस्थान क्रिकेट का अध्यक्ष बनवा दिया. फिर राजे के राज में राजस्थान क्रिकेट और उसके बाहर मोदी ने वह गुल खिलाए कि हरी भरी वसुंधरा की राजनीतिक ज़मीन मरूभूमि में तब्दील हो गई. राजे गईं, राज गया पर मोदी तब तक अपना काज निकाल चुके थे.
बस स्टैंड के उचक्कों वाली मिसाल से यहाँ मामला थोड़ा हट के है. यहाँ पुलिस भी दौड़ चुकी है. अब सवाल है कि क्या पुलिस सिर्फ उचक्के को अंदर करती है या उसे खींच कर लाने वाले को भी... पब्लिक को अब यह खेल मालूम है. मौसेरे भाइयों की भिड़ंत जिसमें बीसीसीआई यह दिखलाना चाहती है कि वह ललित मोदी को कड़ी से कड़ी सज़ा देगी. मोदी का कान पकड़ कर खींचते कह रही है चलो मैं तेरी मरम्मत करवाती हूँ पुलिस से. पुलिस यानि केन्द्र सरकार के लिए बेहतर होगा कि वह मोदी की नहीं बल्कि इस पूरे गैंग की मरम्मत करे. वरना जेबें कटती रहेंगी. उठाईगीरों की कमी नहीं इस मुल्क में.

5 comments:

Anonymous said...
This comment has been removed by the author.
Anonymous said...

Excellent.!! I really enjoyed each & every word & read it Twice. I love the way you write,Commendable.
keep it up :)

focus himachal said...

Sir,
iss majme ke 2 madari himachal mein bhi hain.Yeh baap-bete pradesh ki satta ke kender bhi hain. mujhe aapki sheli aur shabdon ki jadugari se pyar hay. shabad prerna dete hain.

focus himachal said...

Sir,
iss majme ke 2 madari himachal mein bhi hain.Yeh baap-bete pradesh ki satta ke kender bhi hain. mujhe aapki sheli aur shabdon ki jadugari se pyar hay. shabad prerna dete hain.

Rakesh Singh - राकेश सिंह said...

सीबीआई और वर्त्तमान सरकार के ट्रेक-रिकॉर्ड देख के तो ये आशा नहीं ही की जा सकती की - "मोदी ही नहीं बल्कि पूरे गैंग की खबर ली जायेगी" | पिछले ३ सालों से आईपीएल चल रहा था अपनी सरकार सोई थी क्या ... और सरकार कब जाग रही है जब उनके एक मंत्री को आईपीएल के कारन जाना पडा ... ये सरकार की मंशा बयां नहीं करती क्या ?