Friday, October 23, 2009

हुआ हिन में लाल कमीज़

Diary item ...

 


लाल कमीज़
पन्द्रहवें आसियान शिखर सम्मलेन पर लाल कमीज़ का गहरा साया है. थाईलैंड के युनाइटेड फ्रंट फॉर डेमोक्रेसी अगेंस्ट डिक्टेटरशिप को अनाधिकारिक तौर पर रेड शर्ट कहते हैं क्योंकि अपने उग्र प्रदर्शनों के दौरान इसके सदस्य लाल कमीज़ पहनते हैं. ये दल पूर्व प्रधानमंत्री थाकसिन सिनावातरा के बाइज्ज़त थाईलैंड लौटने देने के लिए आन्दोलन कर रहा है. सितम्बर २००६ में सेना ने तख्तापलट कर थाकसिन की सरकार को हटा दिया था और उनपर भ्रष्टाचार के मुक़दमे चलाये गए. थाकसिन को दो साल की कैद की सज़ा सुनाई गई है पर वह देश से बाहर हैं. थाईलैंड के ग्रामीण और पिछडे इलाकों में थाकसिन बहुत लोकप्रिय हैं. उनके समर्थक पार्टियों ने २००७ की आम सभा में बहुमत प्राप्त कर लिया था पर उनमें से मुख्य पार्टी पीपुल्स पॉवर पार्टी को एक संवैधानिक कानून ला कर अवैध घोषित कर दिया गया. तब से उन के समर्थक लाल कमीज़ दाल अक्सर थाईलैंड के शहरों में प्रदर्शन करते हैं.


इस के पहले ये सम्मलेन थाईलैंड के पट्ट्या में होने वाला था पर लाल कमीज़ के धमकियों से उसे निरस्त करना पडा था. अब जब यह हुआ हिन् में हो रहा है, तो इस में लाल कमीज़ वालों ने वादा किया है कि वे सम्मेलन को शांतिपूर्वक चलने देंगे बशर्ते उन्हें अपनी मांगें शीर्ष नेताओं के सामने रखने दिया जाए. थाईलैंड की सेना ने उनकी बात मान ली क्योंकि हुआ हिन् में हंगामे का मतलब होता सम्मेलन का पुनः निरस्त होना.

 

फिर भी हुआ हिन की सुरक्षा व्यवस्था पुलिस के हाथों में नहीं. बैंकॉक के २०० किमी दक्षिण में स्थित चा आम और हुआ हिन बैंकॉक या पट्टाया की तरह पर्यटन स्थल तो हैं पर तुलनात्मक रूप में उनसे काफी शांत और स्वच्छ. पर आसियान बैठक को देखते हुए सेना ने सुरक्षा व्यवस्था अपने हाथों में ले ली है. आम दिनों की तरह पर्यटकों की चहल पहल कम है. १८,००० सैनिक और नौसेना के कई युद्धपोत चा आम और हुआ हिन में हर आने जाने वालों पर नज़र रख रही है.

 

भारत चाहता है कि वह दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के इस संगठन के साथ बेहतर तालमेल कर इस क्षेत्र में चीन का प्रभाव कम कर सकता है पर इसे लगता है सिर्फ भारत और चीन ही इतनी गंभीरता से लेते हैं. सदस्य देशों में कई के शीर्ष नेता सम्मेलन के उदघाटन समारोह से नदारद रहे. इंडोनेशिया, फिलिपिन्स और मलयेशिया के प्रमुखों में किसी ने ख़राब मौसम का हवाला दिया तो किसी ने घरेलू ज़रूरतों का बहाना बनाया. जो आये उनमें दुराव कम होता नहीं दिखता. थाईलैंड और फिलीपींस में चावल के दामों के ऊपर का विवाद नहीं थमा है और दूसरे पडोसी कम्बोडिया से सीमा विवाद जस का तस है. थाईलैंड के प्रधानमंत्री अभिसित विज्जजिवा को चिढाने के लिए कम्बोडिया के प्रधानमंत्री हुन सेन ने कहा कि पूर्व थाई प्रधानमंत्री थाकसिन सिनावातरा उनके निकट मित्र हैं और वह जब चाहें कम्बोडिया में उनके घर रह सकते हैं. इस पर थी प्रधानमंत्री अभिसित ने कहा कि उन्हें दूसरे दिन ही अपने मित्र को थाईलैंड के कानून के हवाले करना पड़ेगा क्योंकि कम्बोडिया और थाईलैंड के बीच संधि है कि वे एक दूसरे देश के अपराधियों को शरण नहीं देंगे. खैर इस चीख चीख में लाल कमीज़ वालों के बीच हुन सेन हीरो हो गए हैं.


 

Wednesday, October 14, 2009

चिपक रहा है बदन पर

पाकिस्तान के सेना मुख्यालय पर हुए हमले ने पाकिस्तान की तालिबान पर तथाकथित जीत की कलई खोल दी है. इस से अमेरिका की आँख खुलेगी, इसकी कोई गारंटी नहीं पर विश्व की नज़रें फिर पाकिस्तान पर आ टिकी हैं. और वही पुराना सवाल फिर खड़ा हो गया है कि ओबामा और उनके सहयोगियों द्बारा इस मुल्क की स्थिरता के लिए झोंके जा रहे अरबों डॉलर क्या इसे फिर फूट पड़ने से बच्चा पायेंगे. याद होगा कि मुंबई २६ नवम्बर को चले लम्बे संघर्ष का मज़ाक उडाते पाकिस्तानियों ने कहा था कि यह भारत की अंदरूनी साजिश है क्योंकि दस बंदूकधारी देश के सुरक्षाकर्मियों को इतने घंटों तक कैसे उलझा कर रख सकते हैं. यही अब उन पर आ पड़ी है. दस बंदूकधारियों ने उनकी सेना को उसके मुख्यालय में ही २२ घंटे उलझाए रखा. एक हफ्ते में यह पाकिस्तान पर तीसरा हमला था और इसे पाकिस्तानी सरकार ने बड़ी सफाई से तालिबान पर मढ़ दिया. यहाँ तक कि दक्षिणी वजीरिस्तान के तालिबान ठिकानों पर बमवर्षा तक करवा दिया गया. वह इसलिए कि हाफिज़ सईद के पाले पोसे पंजाब के आतंकी तंत्र पर दुनिया की नज़र नहीं पड़े.

यही भारत के लिए चिंता का विषय है. रावलपिंडी में सेना मुख्यालय पर हुए हमले में तालिबान की छाप नहीं है. इस पर लश्कर और जैश जैसे संगठनों की छाप है. श्रीलंका की क्रिकेट टीम पर हमला करने वाले लोग भी इस दस्ते में शामिल थे. मुंबई हमलों पर भी इन्हीं की छाप थी. पर पाकिस्तान ने जैसे मुंबई और श्रीलंका टीम पर अटैक के बाद इस सच्चाई को स्वीकार नहीं किया था वैसे ही इस बार भी वह तालिबान की आड़ में छुपता दिख रहा है. इस से इस्लामाबाद को दोतरफा फायदे हैं: तालिबान को घातक और ज़्यादा खतरनाक बता कर वह अमेरिका से पैसे बटोर सकता है और उस आतंक तंत्र को भी ज़िंदा रख सकता है जिसका इस्तेमाल वह भारत के खिलाफ करता रहा है. मुश्किल यह है कि पाकिस्तान स्वयं अपनी कब्र खोद रहा है. जिन जिंदा बमों और बारूद को वह अपने पैरहन से ढँक रहा है, उस में चिंगारियां फूट रही हैं और पाकिस्तान गाहे बगाहे झुलसा है. यही चिंगारी जब लपटों में तब्दील हो जायेगी, तो ना पैरहन रहेगा ना पाकिस्तान. इसकी चिंता अमेरिका या भारत को ही नहीं बल्कि सारे विश्व को करनी चाहिए. एक परमाणु शक्ति वाला देश अगर फूटेगा तो वह इस महाद्वीप में ही नहीं धरती पर कहीं भी ज़लज़ला ला सकता है. ९/११ के बाद आतंक के लिए महाद्वीपों का अंतर ख़त्म हो गया था.

चीनी मीठी नहीं होती हमेशा

प्रधानमंत्री के अरुणाचल दौरे पर चीन की आपत्ति अस्वाभाविक नहीं लगता अगर हम अपने उत्तरी पड़ोसी की हाल की चालों पर गौर करें. इन सब की जड़ में तिब्बत है, जिस पर सैनिक आधिपत्य कायम करने के दशकों बाद भी चीन का नैतिक आधिपत्य नहीं हो पाया है. तिब्बत में चीन ने विकास और आधुनिकता की रेल दौड़ा दी पर तिब्बतियों के दिलों पर राज अभी भी उनके धार्मिक और सांस्कृतिक प्रेरणा श्रोत महामहिम दलाई लामा ही करते हैं. दलाई लामा भारत में रहते हैं और निष्काषित ही सही तिब्बत की नैतिक सरकार यहीं से चलती है. दलाई लामा अरुणाचल के दौरे पर जाने वाले हैं और चीन बेचैन है. चीन इस हद तक अरुणाचल पर दावा करता है कि हाल में आईएएस अधिकारियों की एक टीम का चीन दौरा रद्द करना पड़ा, क्योंकि अरुणाचल-मूळ के एक आईएएस अधिकारी को वीसा नहीं मिला. चीन का कहना था उन्हें वीसा की आवश्यकता नहीं क्योंकि वह अरुणाचल के होने के नाते चीन के ही हुए इसलिए वीसा क्यों?

अब उस घटना को दलाई लामा के परिप्रेक्ष्य में देखें. दलाई लामा का चीन में घुसना मतलब जेल की सलाखों के पीछे होना. और अगर वह अरुणाचल जाते हैं और स्वतंत्र घूमते हैं तो अरुंचल पर चीन के आधिकारिक दावों का क्या होगा. दलाई लामा का भारत में स्वच्छंद विचरण चीन के गले नहीं उतरेगी, कभी भी नहीं. उस पर प्रधानमंत्री का चुनाव के मौके पर अरुणाचल जाना चीन के लिए जले पर नमक छिड़कने जैसा है. क्योंकि लोकतंत्र चीन के लिए अनर्गल चीज़ है और चुनाव इस बात का अंतिम द्योतक है कि अरुणाचल के लोग किस देश को अपना मानते हैं. १९६२ के युद्ध में चीन ने लदाख और अरुणाचल प्रदेश के एक बड़े हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया था. लेकिन वक़्त की ज़रूरत यह थी कि उसे तिब्बत पर बेहतर नियंत्रण चाहिए था. उस के लिए ज़रूरी था की जम्मू और कश्मीर राज्य का अक्साई चीन इलाका वह अपने कब्जे में ले ले. अक्साई चीन उसके सिंकियांग प्रांत को तिब्बत से सीधे जोड़ता है. अपना प्राथमिक स्वार्थ सिद्ध हो जाने के बाद उसने अरुणाचल प्रदेश, जिसे तब नेफा के नाम से जाना जाता था, से अपनी सेना को वापस नियंत्रण रेखा पर बुला लिया.
अक्साई चीन में बड़े हाईवे बने जिसने ना सिर्फ तिब्बत पर बीजिंग की पकड़ मजबूत की बल्कि पाकिस्तान और चीन को सड़क मार्ग से जोड़ दिया. उस के दो दशक से ज़्यादा हो गए थे, जब चीन ने अरुणाचल के तवांग पर अपनी नज़रें गड़ाई. तवांग को चीन दक्षिणी तिब्बत कहता है. अस्सी के दशक में कुछ सैन्य झड़पें भी हुई जिसके बाद दोनों देश सीमा मुद्दों को सुलझाने के लिए कई बार बैठे और कुछ समझौते भी किये गए. पर अरुणाचल, या कम से कम तवांग, पर चीन ने अपना रवैया नहीं बदला.

आर्थिक क्रान्ति के बाद बीजिंग सामरिक रूप से भी मजबूत हो गया पर इक्कीसवीं सदी आते आते भारत ने भी आर्थिक प्रगति के झंडे गाड़े. अब १९६२ जैसे हालत नहीं हैं कि चीन सैन्य शक्ति का इस्तेमाल कर भारत की ज़मीन हथिया सके. हमारे सेना पर्मुखों ने भी स्वीकार लिया कि हम चीन से सीधे भिड़ने में अक्षम हैं, फिर भी दुनिया बदल चुकी है. अब भारत एक आर्थिक शक्ति भी है और अमेरिका जैसे सामरिक शक्ति वाले देशों के करीब भी. अमेरिका ने भारत के साथ परमाणु संधि कर यह दिखा दिया कि वह इस क्षेत्र में संतुलन के लिए भारत के पलड़े में बैठ सकता है. चीन ने उसकी काट भारत के चारो तरफ घेराबंदी कर तैयार की है. उसकी इस योजना में पाकिस्तान, बर्मा और नेपाल के माओवादी उसके साथ हैं. ऎसी स्थिति में प्रश्न यह उठता है कि भारत क्या करे. जवाब भारत पर आर्थिक बोझ डालेंगे पर वह नितांत आवश्यक भी है. भारत के रक्षा बजट में बढोतरी का सबसे बड़ा हिस्सा वेतन बढोतरी में खर्च हो जाता है. ऐसे में भारत के लिए ज़रूरी हो जाता है कि वह अपनी सामरिक क्षमता में व्यापक वृद्धि करे. सीमावर्ती इलाकों में आधारभूत सरंचना का विकास तेजी से हो और किसी भी आपदा से निपटने के लिए अपनी सेना को ज़रूरी साजो-सामान से लैस रखा जाए. युद्ध से सीमा समस्या के समाधान की संभावना नहीं है पर जब तक समस्या है तब तक युद्ध एक संभावना है.