Wednesday, October 14, 2009

चिपक रहा है बदन पर

पाकिस्तान के सेना मुख्यालय पर हुए हमले ने पाकिस्तान की तालिबान पर तथाकथित जीत की कलई खोल दी है. इस से अमेरिका की आँख खुलेगी, इसकी कोई गारंटी नहीं पर विश्व की नज़रें फिर पाकिस्तान पर आ टिकी हैं. और वही पुराना सवाल फिर खड़ा हो गया है कि ओबामा और उनके सहयोगियों द्बारा इस मुल्क की स्थिरता के लिए झोंके जा रहे अरबों डॉलर क्या इसे फिर फूट पड़ने से बच्चा पायेंगे. याद होगा कि मुंबई २६ नवम्बर को चले लम्बे संघर्ष का मज़ाक उडाते पाकिस्तानियों ने कहा था कि यह भारत की अंदरूनी साजिश है क्योंकि दस बंदूकधारी देश के सुरक्षाकर्मियों को इतने घंटों तक कैसे उलझा कर रख सकते हैं. यही अब उन पर आ पड़ी है. दस बंदूकधारियों ने उनकी सेना को उसके मुख्यालय में ही २२ घंटे उलझाए रखा. एक हफ्ते में यह पाकिस्तान पर तीसरा हमला था और इसे पाकिस्तानी सरकार ने बड़ी सफाई से तालिबान पर मढ़ दिया. यहाँ तक कि दक्षिणी वजीरिस्तान के तालिबान ठिकानों पर बमवर्षा तक करवा दिया गया. वह इसलिए कि हाफिज़ सईद के पाले पोसे पंजाब के आतंकी तंत्र पर दुनिया की नज़र नहीं पड़े.

यही भारत के लिए चिंता का विषय है. रावलपिंडी में सेना मुख्यालय पर हुए हमले में तालिबान की छाप नहीं है. इस पर लश्कर और जैश जैसे संगठनों की छाप है. श्रीलंका की क्रिकेट टीम पर हमला करने वाले लोग भी इस दस्ते में शामिल थे. मुंबई हमलों पर भी इन्हीं की छाप थी. पर पाकिस्तान ने जैसे मुंबई और श्रीलंका टीम पर अटैक के बाद इस सच्चाई को स्वीकार नहीं किया था वैसे ही इस बार भी वह तालिबान की आड़ में छुपता दिख रहा है. इस से इस्लामाबाद को दोतरफा फायदे हैं: तालिबान को घातक और ज़्यादा खतरनाक बता कर वह अमेरिका से पैसे बटोर सकता है और उस आतंक तंत्र को भी ज़िंदा रख सकता है जिसका इस्तेमाल वह भारत के खिलाफ करता रहा है. मुश्किल यह है कि पाकिस्तान स्वयं अपनी कब्र खोद रहा है. जिन जिंदा बमों और बारूद को वह अपने पैरहन से ढँक रहा है, उस में चिंगारियां फूट रही हैं और पाकिस्तान गाहे बगाहे झुलसा है. यही चिंगारी जब लपटों में तब्दील हो जायेगी, तो ना पैरहन रहेगा ना पाकिस्तान. इसकी चिंता अमेरिका या भारत को ही नहीं बल्कि सारे विश्व को करनी चाहिए. एक परमाणु शक्ति वाला देश अगर फूटेगा तो वह इस महाद्वीप में ही नहीं धरती पर कहीं भी ज़लज़ला ला सकता है. ९/११ के बाद आतंक के लिए महाद्वीपों का अंतर ख़त्म हो गया था.

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