कह गया बार्ड किसी नाम से पुकारो गुल को
उसकी हस्ती-ए-खुश्बू बता देगी कौन है वो
कँवल का क्या होगा कोई नहीं जानता है
बागबाँ ने कह दिया कँवल का कँवल जाने
गुल फरोश नज़रें गड़ाए बैठे हैं
ये कुम्ह्लाता हुआ फूल खरीदेगा कौन
कोई खुश्बू नहीं, कोई रंगत नहीं
ऎसी हालत पे किसी को भी हैरत नहीं
और क्यों होगी?
Friday, August 28, 2009
Tuesday, August 25, 2009
Kutte by Faiz
ये गलियों के आवारा बेकार कुत्ते
कि बख्शा गया जिनको जौके गदाई
ज़माने की फटकार सरमाया इनका
जहाँ भर का दुत्कार इनकी कमाई
ना आराम शब को ना राहत सवेरे
गलाज़त में घर नालियों में बसेरे
जो बिगडें तो इक दूसरे से लड़ा दो
ज़रा एक रोटी का टुकडा दिखा दो
ये हर एक की ठोकरें खाने वाले
ये फाकों से उकता कर मर जाने वाले
ये मजलूम मखलूक गर सर उठाये
तो इन्सां सब सरकशी भूल जाए
ये चाहें तो दुनिया को अपना बना लें
ये आकाओं की हड्डियां तक चबा लें
कोई इनको अहसास-ए-जिल्लत दिला दे
कोई इनकी सोई हुई दुम हिला दे
कि बख्शा गया जिनको जौके गदाई
ज़माने की फटकार सरमाया इनका
जहाँ भर का दुत्कार इनकी कमाई
ना आराम शब को ना राहत सवेरे
गलाज़त में घर नालियों में बसेरे
जो बिगडें तो इक दूसरे से लड़ा दो
ज़रा एक रोटी का टुकडा दिखा दो
ये हर एक की ठोकरें खाने वाले
ये फाकों से उकता कर मर जाने वाले
ये मजलूम मखलूक गर सर उठाये
तो इन्सां सब सरकशी भूल जाए
ये चाहें तो दुनिया को अपना बना लें
ये आकाओं की हड्डियां तक चबा लें
कोई इनको अहसास-ए-जिल्लत दिला दे
कोई इनकी सोई हुई दुम हिला दे
वो रात नहीं थी भैया
वो रात नहीं थी भैया
जिस रात को कांपा था ये शहर
जब गलियों में बरपा था कहर
छुप छुप के शाम के परदे में
रावण आया था अपने घर
दस दस सर थे और दस दस धड़
बंदूक के नालों की तड तड
मजलूमों की वो थर थर थर
खूं से लथपथ था मेरा शहर
वो रात नहीं थी भैया
लहरों पर लहरा लहरा कर
दहशत ने नापा एक सागर
फिर चार दिशाओं में बँट कर
शैतानी हुई इन्सां की नज़र
वो रात नहीं थी भैया
जब वीटी पर कोहराम हुआ
इक कैफे में कत्ले आम हुआ
जब ताज का मर्मर लाल हुआ
बू-ए-बारूद हर गाम हुआ
वो रात नहीं थी भैया
जो आये थे वो आदमी थे
जो मारे गए वो आदमी थे
कहने को तो सब आदमी हैं
कहने को तो बस इक रात थी वो
वो रात नहीं थी भैया
शैतान का सूरज निकला था
इन्सां की रात जलाने को
अब बंद करो अपने झगडे
हम सब को याद दिलाने को
वो रात नहीं थी भैया
इश्वर, अल्लाह, सबके दाता
उस आदम की औलादों को
इक नए नाग ने काटा है
इस ज़हर से तेरी दुनिया को
अब तू ही बचा अपने बच्चे
अपने बच्चों से मेरे खुदा
वो रात नहीं थी या दाता
वो रात नहीं थी ओ भगवन
वो रात नहीं थी या अल्लाह
जिस रात को कांपा था ये शहर
जब गलियों में बरपा था कहर
छुप छुप के शाम के परदे में
रावण आया था अपने घर
दस दस सर थे और दस दस धड़
बंदूक के नालों की तड तड
मजलूमों की वो थर थर थर
खूं से लथपथ था मेरा शहर
वो रात नहीं थी भैया
लहरों पर लहरा लहरा कर
दहशत ने नापा एक सागर
फिर चार दिशाओं में बँट कर
शैतानी हुई इन्सां की नज़र
वो रात नहीं थी भैया
जब वीटी पर कोहराम हुआ
इक कैफे में कत्ले आम हुआ
जब ताज का मर्मर लाल हुआ
बू-ए-बारूद हर गाम हुआ
वो रात नहीं थी भैया
जो आये थे वो आदमी थे
जो मारे गए वो आदमी थे
कहने को तो सब आदमी हैं
कहने को तो बस इक रात थी वो
वो रात नहीं थी भैया
शैतान का सूरज निकला था
इन्सां की रात जलाने को
अब बंद करो अपने झगडे
हम सब को याद दिलाने को
वो रात नहीं थी भैया
इश्वर, अल्लाह, सबके दाता
उस आदम की औलादों को
इक नए नाग ने काटा है
इस ज़हर से तेरी दुनिया को
अब तू ही बचा अपने बच्चे
अपने बच्चों से मेरे खुदा
वो रात नहीं थी या दाता
वो रात नहीं थी ओ भगवन
वो रात नहीं थी या अल्लाह
Monday, August 17, 2009
खान की टोस्ट किसने गरमाई Or Who cheesed off the Khan?
शाह रुख खान को अमेरिका में नेवार्क एअरपोर्ट पर रोक कर पूछताछ की गई. भारतीय फिल्मों के बादशाह को अमेरिकी आव्रजन विभाग के अधिकारियों ने दो घंटे बिठाये रखा और उनके सामान की जांच की. खास आदमी से आम बर्ताव उनको नहीं जांचा और उन्होंने कहा की उनके मुस्लिम नाम के कारण ही उनके साथ यह बर्ताव हुआ. शाह रुख खान को गुस्सा आया तो आया, भारत सरकार में मंत्री अम्बिका सोनी को और ज़्यादा गुस्सा आया और उन्होंने यहाँ तक कह डाला की भारत में आने वाले विशिष्ट अमेरिकी नागरिकों के साथ भी वही सुलूक किया जाना चाहिए, जो भारतीयों के साथ अमेरिका में हो रहा है. शाह रुख खान पहले व्यक्ति नहीं हैं जिनके साथ ऐसा हुआ है. पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम के साथ एक अमेरिकी एयरलाइन के कर्मचारियों ने भारत में ही वह सब किया जो शाह रुख के साथ अमेरिका में हुआ. गेओर्गे फेर्नान्देस के तो जूते तक उतरवा कर फ्रिस्किंग की गई थी, अमेरिका में. अमेरिका ने हर बार कहा कि हम से भूल हो गई पर नियम तो नियम हैं और वह सब पर लागू होते हैं.
अम्बिका सोनी जो अमेरिकियों के साथ करना चाहती हैं वह उनके साथ पहले से होता रहा है. भारत में हॉलीवुड के कई विशिष्ट कलाकार आते हैं जिन्हें हर कस्टम अधिकारी नहीं पहचानता और उनके सामानों की जांच की जाती है. उन्होंने इसका बावेला कभी खडा नहीं किया, क्योंकि वहां इसे सामान्य प्रक्रिया का अंग माना जाता है. भारत में ख़ास लोगों को आम लोगों वाले नियम पालन करने की आदत नहीं है और वह विदेश में भी यह सुविधा चाहते हैं. यह सच है अमेरिका में लोगों की धार्मिक आधार पर प्रोफाइलिंग होती है और मुस्लिम नामों पर उनके कान खड़े हो जाते हैं. पर बदसलूकी शायद ही होती है और पंक्ति से अलग कर पूछ ताछ उतनी बुरी चीज़ नहीं जितनी यह प्रतीत होती है. इस से पंक्ति में पीछे के लोगों को आसानी होती है, वरना दो घंटे की पूछ ताछ में सब को दो घंटे इंतज़ार करना पड़ता. ९/११ के बाद अमेरिका अपनी सुरक्षा के बारे में अत्यंत सख्त है और इस गंभीरता का शिकार शाह रुख जैसे भारतियों या मुसलामानों को ही नहीं बनाना पड़ता. जिस किसी का नाम भी एलर्ट में आता है उन्हें पूछताछ से गुजरना पड़ता है.
अमेरिका के पूर्व उपराष्ट्रपति अल गोर हों या सेनेटर एडवर्ड केनेडी, इन सबको ऎसी परेशानी का सामना उठाना पड़ा है. उन्होंने अपने देश में ही उन के साथ हुए तथाकथित बदसलूकी पर शोर नहीं मचाया क्योंकि वह यह मानते हैं कि कानून सबके लिए बराबर है और यह सब उनकी सुरक्षा के लिए ही किया जा रहा है. अम्बिका सोनी जैसे वरिष्ठ मंत्री का आपा खो देना राजनयिक दृष्टि से बचपना है पर मानसिकता के हिसाब से देखें तो भारतीय नेताओं को कभी उन प्रक्रियाओं से गुजरना भी नहीं पड़ता, जिस से आम भारतीय रोजाना रु-बा-रु होते हैं. शायद इसीलिए उन्हें आम आदमी की परेशानियों का अंदाजा भी नहीं होता.
टोनी ब्लेयर जब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री थे तो उनके बेटे को उम्र से पहले शराब पीने के आरोप में पकडा गया था. ऎसी ग़लती करने पर वहां नियम है कि अभिभावक को थाने आना पड़ता है और थानेदार से अंतिम चेतावनी सुननी पड़ती है. प्रधानमंत्री और उनकी पत्नी पुलिस स्टेशन गए, उन्हें वहाँ तीस मिनट बिताना पड़ा और एक इंसपेक्टर ने उन्हें फाईनल वार्निंग दी. अब अपने देश में प्रधानमंत्री तो छोड़िये, किसी अदना विधायक पुत्र को भी अगर गिरफ्तार किया जाए तो थानेदार की शामत आ जाती है. लोकतंत्र में कानून सबके लिए बराबर होता है पर हमारे देश में कटु सत्य ये है कि कुछ ख़ास लोग कानून से ऊपर हैं. और जब उन्हें बाहर के देशों में पता चलता है कि आम कानून उनपर भी लागू है तो उन्हें गुस्सा आता है. कानून को शाह रुख खान और एक अदने खान में, किसी खान और जॉन में फर्क नहीं करना चाहिए. अमेरिका में मुस्लिम यात्रियों की प्रोफाइलिंग अशोभनीय है पर अम्बिका सोनी को इस पर आपत्ति नहीं. उन्हें शाह रुख खान की सुरक्षा जांच पर आपत्ति है. और अमेरिका को इस पर आपत्ति होना आपत्तिजनक नहीं.
अम्बिका सोनी जो अमेरिकियों के साथ करना चाहती हैं वह उनके साथ पहले से होता रहा है. भारत में हॉलीवुड के कई विशिष्ट कलाकार आते हैं जिन्हें हर कस्टम अधिकारी नहीं पहचानता और उनके सामानों की जांच की जाती है. उन्होंने इसका बावेला कभी खडा नहीं किया, क्योंकि वहां इसे सामान्य प्रक्रिया का अंग माना जाता है. भारत में ख़ास लोगों को आम लोगों वाले नियम पालन करने की आदत नहीं है और वह विदेश में भी यह सुविधा चाहते हैं. यह सच है अमेरिका में लोगों की धार्मिक आधार पर प्रोफाइलिंग होती है और मुस्लिम नामों पर उनके कान खड़े हो जाते हैं. पर बदसलूकी शायद ही होती है और पंक्ति से अलग कर पूछ ताछ उतनी बुरी चीज़ नहीं जितनी यह प्रतीत होती है. इस से पंक्ति में पीछे के लोगों को आसानी होती है, वरना दो घंटे की पूछ ताछ में सब को दो घंटे इंतज़ार करना पड़ता. ९/११ के बाद अमेरिका अपनी सुरक्षा के बारे में अत्यंत सख्त है और इस गंभीरता का शिकार शाह रुख जैसे भारतियों या मुसलामानों को ही नहीं बनाना पड़ता. जिस किसी का नाम भी एलर्ट में आता है उन्हें पूछताछ से गुजरना पड़ता है.
अमेरिका के पूर्व उपराष्ट्रपति अल गोर हों या सेनेटर एडवर्ड केनेडी, इन सबको ऎसी परेशानी का सामना उठाना पड़ा है. उन्होंने अपने देश में ही उन के साथ हुए तथाकथित बदसलूकी पर शोर नहीं मचाया क्योंकि वह यह मानते हैं कि कानून सबके लिए बराबर है और यह सब उनकी सुरक्षा के लिए ही किया जा रहा है. अम्बिका सोनी जैसे वरिष्ठ मंत्री का आपा खो देना राजनयिक दृष्टि से बचपना है पर मानसिकता के हिसाब से देखें तो भारतीय नेताओं को कभी उन प्रक्रियाओं से गुजरना भी नहीं पड़ता, जिस से आम भारतीय रोजाना रु-बा-रु होते हैं. शायद इसीलिए उन्हें आम आदमी की परेशानियों का अंदाजा भी नहीं होता.
टोनी ब्लेयर जब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री थे तो उनके बेटे को उम्र से पहले शराब पीने के आरोप में पकडा गया था. ऎसी ग़लती करने पर वहां नियम है कि अभिभावक को थाने आना पड़ता है और थानेदार से अंतिम चेतावनी सुननी पड़ती है. प्रधानमंत्री और उनकी पत्नी पुलिस स्टेशन गए, उन्हें वहाँ तीस मिनट बिताना पड़ा और एक इंसपेक्टर ने उन्हें फाईनल वार्निंग दी. अब अपने देश में प्रधानमंत्री तो छोड़िये, किसी अदना विधायक पुत्र को भी अगर गिरफ्तार किया जाए तो थानेदार की शामत आ जाती है. लोकतंत्र में कानून सबके लिए बराबर होता है पर हमारे देश में कटु सत्य ये है कि कुछ ख़ास लोग कानून से ऊपर हैं. और जब उन्हें बाहर के देशों में पता चलता है कि आम कानून उनपर भी लागू है तो उन्हें गुस्सा आता है. कानून को शाह रुख खान और एक अदने खान में, किसी खान और जॉन में फर्क नहीं करना चाहिए. अमेरिका में मुस्लिम यात्रियों की प्रोफाइलिंग अशोभनीय है पर अम्बिका सोनी को इस पर आपत्ति नहीं. उन्हें शाह रुख खान की सुरक्षा जांच पर आपत्ति है. और अमेरिका को इस पर आपत्ति होना आपत्तिजनक नहीं.
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