ये गलियों के आवारा बेकार कुत्ते
कि बख्शा गया जिनको जौके गदाई
ज़माने की फटकार सरमाया इनका
जहाँ भर का दुत्कार इनकी कमाई
ना आराम शब को ना राहत सवेरे
गलाज़त में घर नालियों में बसेरे
जो बिगडें तो इक दूसरे से लड़ा दो
ज़रा एक रोटी का टुकडा दिखा दो
ये हर एक की ठोकरें खाने वाले
ये फाकों से उकता कर मर जाने वाले
ये मजलूम मखलूक गर सर उठाये
तो इन्सां सब सरकशी भूल जाए
ये चाहें तो दुनिया को अपना बना लें
ये आकाओं की हड्डियां तक चबा लें
कोई इनको अहसास-ए-जिल्लत दिला दे
कोई इनकी सोई हुई दुम हिला दे
कि बख्शा गया जिनको जौके गदाई
ज़माने की फटकार सरमाया इनका
जहाँ भर का दुत्कार इनकी कमाई
ना आराम शब को ना राहत सवेरे
गलाज़त में घर नालियों में बसेरे
जो बिगडें तो इक दूसरे से लड़ा दो
ज़रा एक रोटी का टुकडा दिखा दो
ये हर एक की ठोकरें खाने वाले
ये फाकों से उकता कर मर जाने वाले
ये मजलूम मखलूक गर सर उठाये
तो इन्सां सब सरकशी भूल जाए
ये चाहें तो दुनिया को अपना बना लें
ये आकाओं की हड्डियां तक चबा लें
कोई इनको अहसास-ए-जिल्लत दिला दे
कोई इनकी सोई हुई दुम हिला दे
3 comments:
बहुत सही कहा है |
आज फुटपाथ पे दम तोड़ दिया है जिसने
वो भी अपनी उजड़ी हुई दुनिया का सिकंदर होगा
भाई साहब
यह कविता बहुत कुछ कहती है।
फुटपाथ पर रहने वाले कुत्ते हों या इनसान,
दोनों की जिंदगी में ज्यादा फर्क नहीं होता,
कोई नंदा या खान उन्हें कुचल कर चला जाता है
और कहानी खत्म। बोटियां चबाने की ताकत
उनमें है, लेकिन दिक्कत यह है कि इसका अहसास
उन्हें नहीं है।
nice. deep. -P.
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