बुधवार सुबह साक्षी टीवी का एक क्रू चीफ मिनिस्टर राजशेखर रेड्डी के निवास के बाहर अपना कैमरा ट्राईपोड पर रख रहा था. यह सामान्य बात थी, यह वह अक्सर करते थे जब चीफ मिनिस्टर दौरे पर जाते थे तो वह मुख्यमंत्री की एक बाईट ले लेते थे. यह चैनल मुख्यमंत्री का परिवार चलाता था इस लिए टीवी कर्मी कोई ग़लती नहीं कर सकते थे. तस्वीर और आवाज़ साफ़ होनी चाहिए. पर वह सुबह सामान्य नहीं थी, कैमरामैन ने जब हेड फ़ोन लगा कर चेक किया तो हवा के शोर ने उसे कई एडजस्टमेंट करने पर मजबूर किया. तब तक मुख्यमंत्री बाहर आ गए और अपनी पहले से स्टार्ट स्कॉर्पियो में बैठने को थे की उन्हें टीवी वालों का ख़याल आया. उन्होंने एक छोटी बाईट दी: मैं सुखा-ग्रस्त इलाके के एक गाँव में जाकर औचक निरीक्षण करूंगा की हमारी कल्याणकारी योजनाओं पर कैसा काम हो रहा है. उनकी समस्याओं को जानूंगा."
कैमरामैन साऊंड क्वालिटी से संतुष्ट नहीं था पर दुबारा बाईट देने को कहने की हिम्मत नहीं थी. ये नेता ही नहीं, उनके मालिक भी थे. उसने मौसम को कोसा और तेज़ हवा के बारे में बुदबुदाता हुआ, जाती हुई काली स्कॉर्पियो की लाल बत्तियों को फिल्माता रहा.
स्कॉर्पियो बेगमपेट एअरपोर्ट की तरफ बढी, जहाँ से वह दक्षिण आंध्र के चित्तूर के लिए उडेंगे और फिर दो गाँवों का दौरा शुरू होगा. यही तो उनकी शक्ति थी, पेशे से कभी डॉक्टर थे पर अब मरीज की नब्ज़ कम पकड़ते थे पर गरीब और गाँव की नब्ज़ पर मजबूत पकड़ रखते थे. लोक सभा चुनाव में अप्रत्याशित सफलता का मद उनके सर कभी नहीं चढा, वह लगातार गाँवों की तरफ बढ़ते चले गए थे.
एअरपोर्ट पर हवा और तेज़ थी. कंक्रीट की सतह पर सरपट दौड़ती हवा को देख कर ग्रुप कैप्टेन एस.के. भाटिया और कैप्टेन एम्.एस.रेड्डी को कोई झिझक नहीं हुई. बेल ४३० हेलीकॉप्टर उडाने का उनको बहुत अनुभव था. ऎसी तेज़ हवाएं उन्होंने बहुत देखी थी. भाटिया ने अपने जीवन के ५६०० घंटे हवा में बिठाये थे और साथी पायलट एम्.एस.रेड्डी के ३००० से ऊपर उड़ान घंटे का अनुभव ज़्यादातर इसी क्षेत्र में था. तीन साल से तो वह आन्ध्र सरकार के लिए ही हेलीकॉप्टर उडाते थे. वह तो मौसम विभाग की चेतावनी थी जिस पर उन्होंने थोड़े समय विचार किया था. मौसम विभाग की चेतावनी उतने ही स्पष्ट रूप से अस्पष्ट थी जितनी अक्सर होती है: घने बादल छाये हैं और मध्य आन्ध्र में हलके से भारी वर्षा की संभावना है. हेलीकॉप्टर पुराना था और इसे झाड़ पोछ कर बाहर किया गया था. ये बेल ४३० रिटायर नहीं हुआ था पर जब से नई अगुस्ता खरीदी गई थी तब से इसका उपयोग कम ही होता था. पर मशीन बहुत उडी-उडाई थी और दोनों पायलट एक बार फिर इसकी रोल्स रोयस इंजन को खड़े खड़े गुर्राने के मिजाज़ में थे. हनीवेल ऑटोमेटिक फ्लाईट कण्ट्रोल सिस्टम के बटन पर हाथ फेरते हुए दोनों एक और उड़ान के लिए तैयार थे तभी तय समय ८.३० पर 'वाईएसआर' आ गए. ग्रुप कैप्टेन भाटिया ने उन्हें मौसम की जानकारी दी तो राजशेखर रेड्डी के चेहरे पर चिंता की नहीं सहज मुस्कान की लकीरें फ़ैल गईं. आखिर इन्द्र देव मेहरबान थे उनके राज्य पर. वर्षा तो शुभ था. अगर यही बादल पहले से बरस रहे होते तो शायद उन्हें आज ये दौरा करना ही नहीं पड़ता. पर मानसून दगाबाज़ निकला और उसकी देरी से राज्य का एक बड़ा भाग सूखे की चपेट में आ गया था. उन्होंने पायलट को कहा, टेक ऑफ. एयर ट्रैफिक कण्ट्रोल की हरी झंडी मिल चुकी थी और पलों में हेलीकॉप्टर के पंखे हरकत में आ गए. दो दो इंजन और अपनी ७५० शाफ्ट बीएचपी की चिंघाड़ से लैस इसके बिना बेअरिंग के पंखे कुछ देर खड़े खड़े गुर्राए फिर हवा को चीरते हुए उठ गए. विजिबिलिटी अच्छी थी और तीन हज़ार फ़ुट की ऊंचाई पाते ही हैदराबाद का विहंगम दृश्य सबके सामने था. चीफ सिक्यूरिटी ऑफिसर ए.एस.सी. वेस्ली पूरे वक़्त इस का आनंद ले रहे थे जब मुख्यमंत्री अपने सचिव सुब्रह्मनिं से गुफ्तगू में व्यस्त हो गए. हेलीकॉप्टर कुछ और ऊंचाई प्राप्त करने में जुटा था और पायलट भाटिया और रेड्डी दूर काले बादलों की फोरमेशन देख रहे थे. लगभग ८००० फ़ुट की ऊंचाई से दूर तक देखना आसान होता है खासकर जब वह विसुअल फ्लाईट रूल्स पर चल रहे हों, पर यह स्पष्ट था कि यह रिमझिम कभी भी भारी बारिश में तब्दील हो सकती है. ऊपर से हवाएं रुख बदलें तो उन्हिएँ रास्ता भी बदलना पद सकता है. मुख्यमंत्री भी मौसम के बदलते रंगों से ज्यादा देर नावाकिफ नहीं रहे. पर पायलट की तरह उन्हें भी उड़ने का बहुत अनुभव था. तटीय आन्ध्र प्रदेश में ऐसे मौसम के बदलाव उन्होंने बहुत देखे थे और पिछले चार महीनों में उन्होंने भी सौ से ज्यादा घंटे हवा में बिठाये थे. उन्होंने भगवान् को याद किया और फिर अपने दिन के बारे में सोचने लगे. २५० किमी प्रति घंटे के रफ़्तार से चल रहे हेलीकॉप्टर ने आधे घंटे बाद ही खुद को बादलों के बीच ला खडा किया था. ८.३८ में उड़ान के बाद अभी नौ बजे थे और आम तौर पर नीचे के नालामल्ला जंगलों का दृश्य एक हरे मखमली चादर की तरह होता है जिसमें चेंचू जनजाति के लोगों की बस्तियां यहाँ वहाँ बूते की तरह जडी होती हैं. पर उस हरे चादर पर बरसते पानी की बूंदों ने पानी की एक धुंधली चादर बिछा रखी थी. कुरनूल सामने थे और आज की मंजिल चित्तूर उसके भी आगे. बस दक्षिण दिशा में बढ़ते रहना था. इतने भीषण बारिश में आगे बादलों के भयावह नृत्य को देखकर पायलट ने प्रकृति के तांडव से नहीं टकराना ही बेहतर समझा और अपने पूर्व निर्धारित रास्ते से थोडा बायें मुड़ गए.
कैमरामैन साऊंड क्वालिटी से संतुष्ट नहीं था पर दुबारा बाईट देने को कहने की हिम्मत नहीं थी. ये नेता ही नहीं, उनके मालिक भी थे. उसने मौसम को कोसा और तेज़ हवा के बारे में बुदबुदाता हुआ, जाती हुई काली स्कॉर्पियो की लाल बत्तियों को फिल्माता रहा.
स्कॉर्पियो बेगमपेट एअरपोर्ट की तरफ बढी, जहाँ से वह दक्षिण आंध्र के चित्तूर के लिए उडेंगे और फिर दो गाँवों का दौरा शुरू होगा. यही तो उनकी शक्ति थी, पेशे से कभी डॉक्टर थे पर अब मरीज की नब्ज़ कम पकड़ते थे पर गरीब और गाँव की नब्ज़ पर मजबूत पकड़ रखते थे. लोक सभा चुनाव में अप्रत्याशित सफलता का मद उनके सर कभी नहीं चढा, वह लगातार गाँवों की तरफ बढ़ते चले गए थे.
एअरपोर्ट पर हवा और तेज़ थी. कंक्रीट की सतह पर सरपट दौड़ती हवा को देख कर ग्रुप कैप्टेन एस.के. भाटिया और कैप्टेन एम्.एस.रेड्डी को कोई झिझक नहीं हुई. बेल ४३० हेलीकॉप्टर उडाने का उनको बहुत अनुभव था. ऎसी तेज़ हवाएं उन्होंने बहुत देखी थी. भाटिया ने अपने जीवन के ५६०० घंटे हवा में बिठाये थे और साथी पायलट एम्.एस.रेड्डी के ३००० से ऊपर उड़ान घंटे का अनुभव ज़्यादातर इसी क्षेत्र में था. तीन साल से तो वह आन्ध्र सरकार के लिए ही हेलीकॉप्टर उडाते थे. वह तो मौसम विभाग की चेतावनी थी जिस पर उन्होंने थोड़े समय विचार किया था. मौसम विभाग की चेतावनी उतने ही स्पष्ट रूप से अस्पष्ट थी जितनी अक्सर होती है: घने बादल छाये हैं और मध्य आन्ध्र में हलके से भारी वर्षा की संभावना है. हेलीकॉप्टर पुराना था और इसे झाड़ पोछ कर बाहर किया गया था. ये बेल ४३० रिटायर नहीं हुआ था पर जब से नई अगुस्ता खरीदी गई थी तब से इसका उपयोग कम ही होता था. पर मशीन बहुत उडी-उडाई थी और दोनों पायलट एक बार फिर इसकी रोल्स रोयस इंजन को खड़े खड़े गुर्राने के मिजाज़ में थे. हनीवेल ऑटोमेटिक फ्लाईट कण्ट्रोल सिस्टम के बटन पर हाथ फेरते हुए दोनों एक और उड़ान के लिए तैयार थे तभी तय समय ८.३० पर 'वाईएसआर' आ गए. ग्रुप कैप्टेन भाटिया ने उन्हें मौसम की जानकारी दी तो राजशेखर रेड्डी के चेहरे पर चिंता की नहीं सहज मुस्कान की लकीरें फ़ैल गईं. आखिर इन्द्र देव मेहरबान थे उनके राज्य पर. वर्षा तो शुभ था. अगर यही बादल पहले से बरस रहे होते तो शायद उन्हें आज ये दौरा करना ही नहीं पड़ता. पर मानसून दगाबाज़ निकला और उसकी देरी से राज्य का एक बड़ा भाग सूखे की चपेट में आ गया था. उन्होंने पायलट को कहा, टेक ऑफ. एयर ट्रैफिक कण्ट्रोल की हरी झंडी मिल चुकी थी और पलों में हेलीकॉप्टर के पंखे हरकत में आ गए. दो दो इंजन और अपनी ७५० शाफ्ट बीएचपी की चिंघाड़ से लैस इसके बिना बेअरिंग के पंखे कुछ देर खड़े खड़े गुर्राए फिर हवा को चीरते हुए उठ गए. विजिबिलिटी अच्छी थी और तीन हज़ार फ़ुट की ऊंचाई पाते ही हैदराबाद का विहंगम दृश्य सबके सामने था. चीफ सिक्यूरिटी ऑफिसर ए.एस.सी. वेस्ली पूरे वक़्त इस का आनंद ले रहे थे जब मुख्यमंत्री अपने सचिव सुब्रह्मनिं से गुफ्तगू में व्यस्त हो गए. हेलीकॉप्टर कुछ और ऊंचाई प्राप्त करने में जुटा था और पायलट भाटिया और रेड्डी दूर काले बादलों की फोरमेशन देख रहे थे. लगभग ८००० फ़ुट की ऊंचाई से दूर तक देखना आसान होता है खासकर जब वह विसुअल फ्लाईट रूल्स पर चल रहे हों, पर यह स्पष्ट था कि यह रिमझिम कभी भी भारी बारिश में तब्दील हो सकती है. ऊपर से हवाएं रुख बदलें तो उन्हिएँ रास्ता भी बदलना पद सकता है. मुख्यमंत्री भी मौसम के बदलते रंगों से ज्यादा देर नावाकिफ नहीं रहे. पर पायलट की तरह उन्हें भी उड़ने का बहुत अनुभव था. तटीय आन्ध्र प्रदेश में ऐसे मौसम के बदलाव उन्होंने बहुत देखे थे और पिछले चार महीनों में उन्होंने भी सौ से ज्यादा घंटे हवा में बिठाये थे. उन्होंने भगवान् को याद किया और फिर अपने दिन के बारे में सोचने लगे. २५० किमी प्रति घंटे के रफ़्तार से चल रहे हेलीकॉप्टर ने आधे घंटे बाद ही खुद को बादलों के बीच ला खडा किया था. ८.३८ में उड़ान के बाद अभी नौ बजे थे और आम तौर पर नीचे के नालामल्ला जंगलों का दृश्य एक हरे मखमली चादर की तरह होता है जिसमें चेंचू जनजाति के लोगों की बस्तियां यहाँ वहाँ बूते की तरह जडी होती हैं. पर उस हरे चादर पर बरसते पानी की बूंदों ने पानी की एक धुंधली चादर बिछा रखी थी. कुरनूल सामने थे और आज की मंजिल चित्तूर उसके भी आगे. बस दक्षिण दिशा में बढ़ते रहना था. इतने भीषण बारिश में आगे बादलों के भयावह नृत्य को देखकर पायलट ने प्रकृति के तांडव से नहीं टकराना ही बेहतर समझा और अपने पूर्व निर्धारित रास्ते से थोडा बायें मुड़ गए.
ऑटो पायलट पर होते तो हेलीकॉप्टर अपने पूर्व निर्धारित रास्ते पर चलता है. चाहे बादल कितने घने हों. पर विजुअल फ्लाइंग में आगे देख कर दिशा बदल सकते हैं. काले घने बादलों में वह कितना मुड़े किसको पता, वहां कुछ दिख नहीं रहा था.
कोकपिट में शांति थी पर साँसे तेज़ चल रही थी. बाहर की बारिश से शीशे पर नमी जम रही थी फिर ओस की बूंदों सरीखी ऐसे टपक रही थी मानो बारिश शीशे से रिस रही हो. विजिबिलिटी कुछ सौ मीटर की होती पर इस ने इसे घटाकर कुछ मीटर का रख दिया था. ज़मीन दिखती रहे इस के लिए कॉप्टर नीचा उड़ रहा था और बार बार उन्हें इसकी ऊंचाई कम करनी पड़ रही थी. तभी अचानक एक दीवार सा उग आया. एक छोटी पहाडी उनका रास्ता रोके खडी थी. दोनों पायलट हरकत में आ गए और तीनो सवार दहशत में. जब तक हेलीकॉप्टर मुड़ता, ४२ फ़ुट लम्बे पंखे उस पहाडी को खुरच चुके थे, दूसरे पल उस पहाडी पर एक हेलीकॉप्टर के टुकड़े थे. विमान में चार सौ लीटर इंधन था जिस से आग आग फैल गई, पर बारिश ने उसे भी मिनटों में बुझा दिया. इस के पहले कि उसका धुंआ उठे.९ बजकर तेरह मिनट पर हैदराबाद एयर ट्रैफिक कण्ट्रोल से संपर्क टूट चुका था और अब चेन्नई को संपर्क करना था. पर किसी को खबर नहीं थी मुख्यमंत्री का हेलीकॉप्टर कहाँ गया. हैदराबाद में हड़कंप था पर अनहोनी की आशंका को कोई हवा नहीं देना चाहता था. नालामल्ला के जंगल वैसे भी नक्सालियों से भरे पड़े हैं, कहीं वो इसका फायदा ना उठा लें. खुदा ना करे कहीं उन्होंने ही तो कुछ नहीं कर दिया. कैबिनेट की मीटिंग बुला ली गई, दिल्ली में कांग्रेस सरकार सकते में थी और मुख्यमंत्री की खोज शुरू हो गई. बंगलोर, हैदराबाद, चेन्नई और यहाँ तक कि बरेली से हेलीकॉप्टर और लडाकू विमान नालामल्ला के जंगलों की ओर कूच कर गए. २००० से ज्यादा पुलिस, क्र्प्फ़ और कमांडो दस्ते जंगलों को छानने में जुट गए. बीएसएनएल ने अपने टावरों की क्षमता बढ़ा दी कि वो जंगल के सिग्नल रिसीव कर सकें. पर तीन सौ वर्ग किलोमीटर में फैले जंगल में एक हेलीकॉप्टर ढूँढना आसान नहीं होता. अमेरिका से कहा गया कि वह अपने सतेलाईट के कैमरे से इन जंगलों पर नज़र रखे, इसरो का एक विमान अपने थर्मल इमजिंग मशीन लेकर जंगलों के ऊपर मंडराता रहा. वक़्त के खिलाफ ज़ंग शुरू हो गई. सब को रात का दर था. नालामल्ला के जंगल तेंदुओं और बाघों का भी घर है और भगवान् ना करे अगर मुख्यमंत्री घायल हों और ऎसी काली रात. मटमैले जंगल में जीवन की तलाश में चेंचू आबादी भी लग गई. आत्मकुर गाँव के लोगों ने खतरनाक ढंग से नीचे उड़ते हेलीकॉप्टर को देखा था, उन्होंने उसकी दिशा बताई. तभी बीएसएनएल के एक टावर ने एक एसएम्एस डिलिवरी की सूचना दी, जो उस सुदूर क्षेत्र में कसी मोबाइल को गया था. पर तब तक देर हो चुकी थी. पूरा दिन आसमान ने जंगल पर पानी उडेला था. रात ने जंगल पर अपनी काली चादर रख दी थी. पर इतना भरोसा था कि सुबह ये खोज ख़त्म होगी. सारे संकेत बता रहे थी श्रीसैलम क्षेत्र में उफनते जंगली नालों के पार यह खोज ख़त्म होगी.
और सुबह सारी मशीनरी वहां झोंक दी गई, आसमान में उड़ते विमान और ज़मीन पर झाडी दर झाडी झांकते जवान और आम नागरिक. तभी ऊपर उड़ते एक विमान ने लाइफबॉय साबुन लपेट एक टुकडा नीचे चल रहे खोजी दस्ते के बीच फेंका. उन्होंने जीपीएस लोकेशन भेजा था, जो तुंरत समझ भी लिया गया क्योंकि नीचे के दस्ते भी जीपीएस यंत्रों से लैस थे. वह तब भी कोई आठ किलोमीटर दूर थे. उनके पहले ही एक दूसरे विमान से रस्सी के सहारे जवान उस पहाडी पर कूद चुके थे. उन्हें तीन शव तो तुंरत दिख गए पर दो और को ढूँढने के लिए मशक्कत करनी पडी. मलबा और मानव अंग यहाँ वहाँ बिखरे पड़े थे. बादलों भी थक गए थे और सुस्ता रहे थे. साक्षी टीवी पर वाईएसआर के साथ १९४९-२००९ लग चुका था. गणेश विसर्जन की तैयारी धरी की धरी रह गई और पूरे राज्य में लोग अपने नेता को विदाई की तैयारियों में जुट गए. वाईएसआर की तरह. एक काम ख़त्म होने से पहले दूसरे का श्रीगणेश.
5 comments:
बढिया वर्णन किया है आपने घटना का | पर मैं इस बात से सहमत नहीं की लोक सभा चुनाव में अप्रत्याशित सफलता का मद उनके सर कभी नहीं चढा, वह लगातार गाँवों की तरफ बढ़ते चले गए थे. यदि आप जमीनी स्तर पे देखेंगे तो पायेंगे की YSR ने local लेवल पे हजारों विपक्षी नेताओं को मरवाया था |
और भी कई ऐसी चीजें रही जहाँ मैं सरतिया कह सकता हूँ की वो एक अच्छे मुखमंत्री नहीं थे :
* तिरुपति के ७ मैं से २-४ पहाडियों पे कब्जा कर चर्च बनाने की योजना |
* हिन्दू मंदिरों की दान को क्रिश्चियन मिसनरी के लिए उपयोग करना |
* अनंतपुर मैं तो YSR के बेटे ने एक हिन्दू मंदिर को तोडा है |
* लाखों हिन्दू YSR के कुत्सित प्रयास से क्रिश्चियन बने |
..........
शायद यही रिपोर्ट मैंने दैनिक भास्कर के एक विशेषांक में पढ़ी है. क्या वहाँ भी आपने ही लिखी.
@Rakeshji: The story was an attempt only to recreate the 24 hours based on the information sourced from experts.
@Atmaramji: Yes, this first appeared in Dainik Bhaskar. Most of my writing is first published in the newspaper I work for.
...जब तक हेलीकॉप्टर मुड़ता, 42 फीट लंबे पंख उस पहाड़ी को खुरच चुके थे। दूसरे पल उस पहाड़ी पर एक हेलीकॉप्टर के टुकड़े थे...
इस लाइन को लिखने तथा पढऩे में जितना वक्त लगा, शायद ही इससे ज्यादा वक्त कॉप्टर के अंदर बैठे लोगों की जीवन लीला को समाप्त होने में लगा हो। समय की इस नब्ज को पकडऩा बहुत ही अच्छा लगा। लिखने की कला को सीखने एवं जानकारी के लिहाज से भी लेख बहुत अच्छा है।
Sad how you can write an obituary like this. Reads like a light crime thriller, or recreation of an accident/crime on star news or Aaj Tak, or a story in manohar kahaniyan. Did not expect this from you. really disappointing.
-P.
Post a Comment