अगर लोकतंत्र में चुनाव परिणाम जनता की आकांक्षाओं का दर्पण होता है, तो झारखण्ड के जनादेश में जनता अपना चेहरा देख नहीं पाएगी. टूटे आईने में अक्स भी बिखर जाता है, कुछ ऐसा ही हुआ है झारखण्ड में. संभावनाओं और संपदाओं से सम्पूर्ण तथा सुविधाओं और विकास से वंचित इस राज्य का दुर्भाग्य ही कहिये कि जब से इसका गठन हुआ है, इसे स्थिरता नसीब नहीं हुई. जब बीजेपी को बहुमत था तो उस पार्टी की आतंरिक अस्थिरता का बोझ तब नवजात राज्य के सीने को रौंदता रहा फिर शिबू सोरेन और लालू यादव की रचित पटकथा पर कोड़ा नायक बन बैठे. उनकी खलनायकी के राज़ जब खुलने लगे तो झारखण्ड सहम सा गया. ऎसी आशा भी की जाने लगी कि लूट-खसोट और बन्दर-बाँट की राजनीति में पिट चुकी जनता इस बार अपने लिए न्याय ढूंढेगी. कोड़ा की पत्नी भारी बहुमत से जीती. और सभी हार गए, जनता भी.
जो तस्वीर उभर कर सामने आई है उस से लगता है जोड़ तोड़ होगा और शासन जो भी करे बन्दर-बाँट का डर बना रहेगा. आत्म-विश्वास से लबालब कांग्रेस ने पूर्व भाजपाई और अच्छी छवि वाले बाबूलाल मरांडी की नवगठित पार्टी को ज़्यादा सीट नहीं दी पर परिणामों ने कांग्रेस को चौंका दिया. अब जो हुआ सो हुआ पर इस गठबंधन को शिबू सोरेन की झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के समर्थन की दरकार होगी. लालू की राष्ट्रीय जनता दल शायद ही पांच के अंक से आगे जाए पर ऐसे खंडित जनादेश में वह भी एक रोल निभाएंगे. झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के सोरेन चाहते हैं किंग बनना पर जनता ने उन्हें किंगमेकर तो बना ही दिया. उनके बिना कोई सरकार नहीं बनेगी और उनकी जिद है कि मुख्यमंत्री वही बनेंगे. जिस खिचडी से झारखण्ड का आर्थिक स्वास्थ्य खराब हुआ वही खिचड़ी फिर पकेगी. शिबू सोरेन के दामन पर भ्रष्टाचार के गहरे धब्बे हैं और उन्हें जो पार्टी भी समर्थन दे उसे यह प्रतिज्ञा लेनी होगी कि झारखण्ड की गरीब जनता के साथ फिर धोखा ना हो. ऐसे मौकों पर कई चिन्तक द्वि-दलीय व्यवस्था की वकालत करते हैं पर क्या उस के अलावा कोई समाधान है? जनता को अपने वोट के बारे में विचार करना होगा और पार्टियों को भी चुनाव के पहले अपने साथियों को चुनना होगा, चुनाव के बाद खरीद-फरोख्त के आरोप लगते हैं और लोकतंत्र की छवि खराब होती है. झारखण्ड में लोकतंत्र की छवि का साफ़ और न्यायपूर्ण होना कहीं ज़्यादा आवश्यक है क्योंकि माओवादी संगठन ऎसी कमजोरियों को भुना कर जनता का समर्थन प्राप्त करते हैं. आज इस राज्य का एक बड़ा भाग माओवादी प्रभाव में है. उस मर्ज़ की दवा लोकतंत्र का सफल और विश्वसनीय रूप है. क्या झारखण्ड के नेता स्वच्छ और विश्वसनीय लोकतंत्र के पहरुए बनने के लिए तैयार हैं?
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