राष्ट्रपति बराक ओबामा के नए अफगान-पाकिस्तान रणनीति की घोषणा में नया कुछ नहीं है. यह अमेरिका की दोमुंही नीतियों का एक और दस्तावेज है, जिसमें युद्ध के अमेरिकी समर्थकों को ३०,००० और सैनिक भेजकर खुश किया गया, वहीं युद्ध के विरोधियों को अफगानिस्तान से वापसी की एक तारीख थामकर शांत किया गया. कल के एक सर्वे में पता चला युद्ध के समर्थक घट कर ३५ फीसदी रह गए हैं. और 55 फ़ीसदी अब इस खूनी खेल का अंत चाहते हैं जिसने 800 अमेरिकियों की जान और 200 बिलियन डॉलर लील चुका है. विर्दोहियों में ज़्यादातर ओबामा की डेमोक्रेटिक पार्टी के समर्थक हैं. यह अमेरिका के लोगों के लिए दोमुंहा सन्देश था. कुछ ऐसा ही सन्देश पाकिस्तान को दिया गया है. स्पष्ट है अब ओबामा ने अपनी सेना को युद्धक्षेत्र पाकिस्तान के भीतर तक ले जाने को हरी झंडी डे दी है. वहीं पाकिस्तान को और मदद और हथियार की पेशकश भी कर दी गई. जिस आमूल परिवर्तन की बात ओबामा ने अपने प्रशासन के शुरुआती दिनों में की, वह इस रणनीति में नहीं दिखती. जोर्ज बुश राष्ट्रपति नहीं रहे पर ओबामा कितने अलग हैं, यह un ३०,००० सैनिकों की तैनाती के बाद पता चल जाएगा. अमेरिका का सबसे लंबा युद्ध अगले 18 महीने में ख़त्म कैसे होगा जब 8 साल में तालिबान मजबूत होता दिख रहा है? यह सवाल जायज़ है पर इसके जवाब के लिए इंतज़ार ज़रूरी है. पर उस सवाल का क्या करें जो इस पुरी रणनीति पर सवाल खड़ा करता है. आप सैनिकों की वापसी का तारीख देकर कोई युद्ध कैसे जीत सकते हैं? सनद रहे, यहाँ अमेरिका किसी देश की सेना से आमने सामने नहीं है. तालिबान गुरिल्ला युद्ध कर रहे हैं? जब तालिबान को यह पता हो कि अमेरिका जुलाई २०११ में सब कुछ छोड़ वापस जाएगा, तो वह अगले १८ महीने अपने गुफाओं में काट लेंगे. अमेरिकियों के जाने के बाद फिर काबुल हथिया लेंगे. तो क्या घरेलु युद्ध विरोधियों को खुश करने में ओबामा ने एक बड़ी भूल कर दी है? इन सब जवाबों के पहले अमेरिका को यह समझ लेना चाहिए कि वह किसी शत्रु देश को कराने नहीं निकले हैं. वास्तविकता यह है कि अफगानिस्तान ही एक देश नहीं. यह वह ज़मीन है, जो कबीलाई समाजों से बना है और यह ज़मीन कई आधुनिक अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं से घिरा होने के कारण देश कहलाने लगा है. वहां लोकतंत्र की सफलता का हाल हालिया चुनावों में ज़ाहिर हो गया. उस देश के सामजिक और शासनात्मक स्थिति यह नहीं है कि वहां लोकतंत्र सफल हो. उनका लोकतंत्र लोया जिरगा तक सीमित है. सोवियत रूस ने उन्हें जबरन एक कर रखा था, पर उन्हें भी भागना पड़ा. उनके लिए आसान था क्योंकि वह आमू नदी पर कर अपने देश चले गए. अमेरिका के लिए अफगानिस्तान छोड़ना उतना आसान नहीं होगा. ओबामा के जुलाई २०११ के सपने सच होते नहीं दीखते.
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1 comment:
बढ़िया विश्लेषण |
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