लोकलोक सभा के नातायाज़ हमारे सामने हैं. कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है. खुद कांग्रेस के नेता इस बात को मानते हैं कि जीत की आशा थी पर ऎसी जीत होगी पता नहीं था. उन्होंने अपने सहयोगियों और जनता को तो धन्यवाद दिया पर एक आदमी को नहीं जिसने जीत के अंतर को बढ़ाने में कांग्रेस की मदद की. कांग्रेस के लोग तो राहुल गाँधी को इसका सारा श्रेय दे रहे हैं पर एक और गाँधी है जिसने-अनजाने कांग्रेस की मदद की. वरुण गाँधी पीलीभीत से चुनाव जीत गए. पर उन्होंने भाजपा को इस चुनाव में हरा दिया. जो चुनाव विकास और इन्फ्रास्ट्रक्चर के मुद्दों पर लड़ा जा रहा था संजय गाँधी के पुत्र ने उसे वापस उन मुकाम पर ला खड़ा किया, जहां से उसने शुरुआत की थी। एक चेहरा और एक नकाब से आगे निकल चुकी पार्टी फिर डरावनी लगने लगी। यह चेहरा था या मास्क पर जो भी था, इसे देख कर देश का एक बड़े वर्ग को सांप सुंघा गया.
आज वह भाजपा जिसे अटल बिहारी वाजपयी दक्षिण पंथ से मोड़कर बीच के रास्ते पर लाये थे, फिर एक दोमुहाने पर खड़ी है जहाँ से एक रास्ता अति-दक्षिण पंथ या हार्डकोर हिंदुत्व की ओर जाता है और एक बीच से ठीक दाएं, जिसे सॉफ्ट हिंदुत्व कहा जाता है. हार का विश्लेषण होगा, आत्म मंथन होगा और फिर सवाल खड़ा होगा कि जाएँ तो जाएँ कहाँ. चुनाव के वक़्त एक बड़ी भूल उसने की और वह भूल थी यह बताना कि आगे कौन सा रास्ता अपनाया जाएगा. यह तब हुआ जब नरेन्द्र मोदी को अडवाणी के बाद अगला प्रधानमंत्री घोषित कर दिया. यह बड़ी नाज़ुक घडी थी, चुनाव प्रचार के दौरान. जनता अपना मन बना रही थी. तभी वरुण ने बीजेपी के प्रचार को एक यू-टर्न दे दिया और बीजेपी ने उनकी लाइन को नकारा नहीं. उस के ऊपर मोदी को अडवाणी का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया. ऐसा नहीं कि उनके मुस्लिम वोट कट गए. मुस्लिम वोट तो बीजेपी का था ही नहीं. पर इस धुर दक्षिणपंथ से हिन्दू डर गए. ख़ास कर मध्य वर्ग और बुद्धिजीवी वर्ग जो इन्फ्रास्ट्रक्चर और सुरक्षा के मुद्दों पर बीजेपी की तरफ झुका था. दुनिया में आर्थिक मंदी है और भारतीय अर्थव्यवस्था उस से बुरी तरह प्रभावित हो रही थी. हमारे सभी पडोसी देशों में गृह युद्घ जैसा माहौल है. उस में जनता नहीं चाहती कि ऐसे लोग सत्ता आसीन हो जाएँ जो घर की शांति और सद्भाव बिगाड़ दें. बीजेपी को बिहार में बहुत समर्थन मिला क्यूंकि वहां के मोदी, सुशिल कुमार मोदी, वैसी नीतियों में विश्वास करते हैं जो नीतिश कुमार ने बनायी हैं, न कि नरेन्द्र मोदी ने।
अभी भारत देश ऐसे मुकाम पर खडा है जहाँ उसके विश्व शक्ति बन्ने का सपना पूरा होता दिखाई देता है. ऐसा नहीं कि यह सपना सिर्फ कांग्रेस का है. बीजेपी ने अपना प्रचार अभियान इसी से शुरू किया था. पर अचानक वरुण ने नदा के सतरंगे सपने पर गहरा भगवा पोत दिया. प्रचार अचानक निगेटिव हो गयी. व्यक्तिगत आघात-और प्रत्याघात बढ़ गए. जनता पोजिटिव थी. और काफी अरसे बाद पोजिटिव वोटिंग हुई इस देश में. मनमोहन सिंह की छवि और उनके पांच साल के शाशन में सद्भाव और शांति रही, प्रगति होती रही. और परिणाम सबके सामने है।
नीतिश कुमार बीजेपी के साथ रहे फिर भी उनके पोजिटिव केम्पेन को जनता ने पसंद किया. वहां मुसलमानों ने भी बीजेपी को वोट किया। कंधमाल में भगवा ब्रिगेड के आचार के बाद नवीन पटनायक के लिए बीजेपी के साथ रहना संभव नहीं रहा था. वहां भी बीजेपी का सूपड़ा साफ़ हो गया और नवीन पटनायक ने फिर झंडा गाडा. बीजेपी के पास पांच साल हैं एक लीडर तलाशने को. अडवाणी की उम्र हो गयी है. मोदी के ऊपर दाग है. इस पार्टी को एक नेता चाहिए जो अर्थव्यवस्था, विदेश नीति, विकास और सुरक्षा के मामलों में आक्रामक हो पर हिंदुत्व के मुद्दे पर सॉफ्ट हो. बीजेपी को एक वाजपयी चाहिए. कोई है?
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1 comment:
कमलेश जी आपने बिलकुल सही कहा है की बी.जे.पी. को एक नया वाजपयी चहिये, पर आपकी ये लेख अधूरी सी है| वरुण गाँधी प्रकरण का नकारत्मक प्रभाव यदि हुआ भी है तो वो सिर्फ़ यु.पी. में ही हुआ होगा, बाकी छत्तिसाग़ड, कर्नाटक, एम.पी., गुज्रारात में तो इसका प्रभाव नहीं के बराबर हुआ है| जहाँ तक यु.पी. का सवाल है वरुण गाँधी प्रकरण से ज्यादा ब्राह्मनो ने बी.जे.पी. की लुटीया डुबोई| ब्राह्मनो को राहुल बाबा ज्यादा ब्राह्मण लगे, कलराज मिश्र, मुरली मनोहर या केसरी नाथ त्रिपाठी के बनिस्पत्| अब ब्राह्मनो ने कैसे और क्या सोच कर राहुल बाबा को ब्राह्मण माना ये मेरी समझ के बाहर है| खैर जो भी हो एक बात तो तै है की यदि हिंदू किसी अन्य धर्म को स्वीकार करता है तो इसका सबसे ज्यादा नुकसान ब्राह्मनो को हि है| कांग्रेस परोक्ष रूप से धर्म परिवर्तन (पिचले दरवाजे से ही सहि) को बढ़ावा देता है|
अब आते है राजस्थान पे, यहाँ पर बी.जे.पी. को अंदरूनी कलह् और गहलोत ने ले डुबाया| एम.पी., में भी कमोबेश अंदरूनी कलह् एक बड़ा कारण रहा| दिल्ली में शीला का जादू और बी.जे.पी. का आत्मविश्वास बड़ा कारण रहा| महाराश्तारा में राज ठाकरे ने कुछखेल बिगाडा.|
इसके अलावा भी कई कारण रहे बी.जे.पी. के खराब प्रदर्शन के:
* युवा नेताओं की कमी| * रा.ज.ग से अपने साथियों (नवीन बाबु, अम्मा, ... का एक-एक कर बाहर निकलना)|
* मन मोहन पे जरूरत से ज्यादा बोलना|
* आज की भारत की जनता के लिए सायद आतंकवाद मुद्दा नहीं है, मीडिया का ये मुद्दा अभी भी है| बी.जे.पी. ने एसपे जरूरतसे ज्यादा पसीना बहया| सच पूछे तो पूरे विश्व के लिए एक बड़ा संकट है पर सायद भारत की जनता ऐसा नहीं सोच्ती|
* धर्म परिवर्तन के लिए हिन्दुओं को टारगेट बनाना या पचास-साठ साल बाद हिन्दुओं की सम्भवित दयनीय होती स्थिती (जैसा की आज के समय में कश्मीर, उत्तर-पुर्वी राज्यों में है), सायद हिंदु समाज के लिए चिंता का विषय नहीं है| बी.जे.पी. का तो आत्मा ही हिंदुत्व का है|
* बी.जे.पी. इंडियन मीडिया को अपने पक्ष में नहीं कर पयी| सी.एन..एन. - अई.बी.न्., एन्.डी.टी.वी., सारे चैनल तो बी.जे.पी. को हमेसा ही ग़लत बताते है|
ये तो हुई बी.जे.पी. के हर का कारण्| मुझे तो कांग्रेस के पाँच साल के कार्यकाल में वैसा बहुत विकास हुआ नही उलटे कई मुद्दे (क्वत्रोछि, नवीन चावला, जगदीश त्ट्ताएत्लर्, प्रतिभा पाटिल जैसी रश्त्रपती, मुंबई, आसाम्, ... आतंकवादी हमला, सी.बी.आई. को कांग्रेस इन्वेस्टीगेशन बुएरु बनाना, सरकार बचने के लिए सांसदों का खरीद..... ) तो उसकी साख गिराते नजर नजर आते थे, पर ये कारनामे की सजा जनता ने कांग्रेस को नहीं दी|
जो भी हो लोकतंत्र है और जनता जनार्दन है| जनता की इच्छा सभी को सिरोंधर्य है, लेकिन अंत में एक बात जरुर कहूँगा की जीत हमेसा अछाइ की नहीं होती और हार हमेसा बुराई की नहीं होती|
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