दोस्त गम्ख्वारी में मेरी, सही फर्मावेंगे क्या,
ज़ख्म के भरने तलक नाखून न बढ़ जावेंगे क्या?
--- मिर्जा गालिब
करूणानिधि की मुश्किलें तो अभी शुरू हुई हैं. उनके परिवार में मंत्रिमंडल मिल जाने भर से शांति नहीं आ जायेंगी. उनकी दूसरी पत्नी इस बात से खुश हो जायेंगी कि अड़गिरी को कैबिनेट में जगह मिल गयी है. पर दिल्ली से निकलते संकेत बताते हैं कि तीसरी पत्नी से हुई कनिमोई को राज्य मंत्री का दर्जा ही मिलेगा. तीनों पत्नियों में सिर्फ पहली हैं जिनसे हुआ पुत्र इस सत्ता संघर्ष में भाग नहीं ले रहा. पहली पत्नी वैसे भी स्वर्गवासी हैं. दूसरी पत्नी दयालु से हुए तीन पुत्रों में से दो के बीच राज्य के भीतर ही सत्ता के लिए संघर्ष चल रहा है.
बड़े भाई अड़गिरी इस बात से खफा खफा रहते हैं कि राज्य की सत्ता में छोटे स्टालिन की बहुत चलती है. अड़गिरी दक्षिण तमिलनाडू में बहुत राजनितिक दबदबा रखते हैं, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम पार्टी पर उनकी पकड़ मजबूत है और करूणानिधि को डर रहता है कि वह पार्टी विभाजित नहीं कर दें. पर स्टालिन उनका प्रिय है और यह लगभग तय हो गया है कि वही भविष्य में मुख्यमंत्री पद के दावेदार होंगे. यही कारण है कि वह अड़गिरी को केंद्र में व्यस्त देखना चाहते हैं ताकि स्टालिन की पार्टी पर पकड़ मजबूत हो. मुश्किल यह है कि तीसरी पत्नी रजति नहीं चाहती कि करूणानिधि की राजनितिक धरोहर दूसरी के संतानें समेत जाएँ. इस लिए उन्होंने कविता लेखन और महिला अधिकार एक्टिविस्ट कनिमोई को राजनीति में आने को प्रेरित किया.
अड़गिरी और स्टालिन की बहन सेल्वी की शादी उनके ममेरे भाई मुरासोली सेलवम से हुई थी. सेलवम के बड़े भाई मुरासोली मारन केंद्रीय राजनीति में करूणानिधि का प्रतिनिधित्व करते थे. मुरासोली मारन की मृत्यु के बाद दयानिधि मारन ने समझ लिया कि वह अधिकार उनका होगा. करूणानिधि और उनके बेटों को यह मंजूर नहीं था और दयानिधि को बीच में ही टेलिकॉम मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. ए. राजा ने उनसे यह पदभार लिया. फिर दोनों परिवारों में ठन गयी. यह झगड़ा सेल्वी के लिए मुसीबत बन गयी. एक तरफ घर वाले और एक तरफ ससुरालवाले. अंततः सेल्वी के प्रयासों से ही करूणानिधि ने मारन को माफ़ किया. पर ज़ख्म के भरने तलक नाखून बढ़ चुके थे. प्रेम का धागा जुड़ा पर गांठें रह गईं.
मारन और उनके भाई सन टीवी समुदाय के मालिक हैं जिनका केबल नेटवर्क पर आधिपत्य है और वे करीब दर्ज़न भर चैनलों के मालिक भी हैं. दुराव के समय उन्होंने करूणानिधि परिवार पर हमला बोल दिया. तब टेलिकॉम स्पेक्ट्रम ऑक्शन पर बेईमानी के आरोप लगे और ए. राजा पर कीचड उछला. मारन के टीवी नेटवर्क ने यह लाइन पकडी कि राजा ने अप्रत्यक्ष रूप से कनिमोई को फायदा पहुंचाया है. तब से कनिमोई और मारन भाईओं के बीच एक खाई बन गयी. किसी ने कहा है दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे, जब कभी हम दोस्त हो जाएँ तो शर्मिन्दा न हों.
आज अगर दयालु-पुत्र अड़गिरी और दयानिधि मारन को कैबिनेट में जगह मिलती है तो कनिमोई और उनकी अम्मा बिलकुल पसंद नहीं करेंगी. करूणानिधि कनिमोई की माँ के साथ ही रहते हैं. चूँकि कानून इन्हें दो पत्नियां रखने का अधिकार नहीं देता, करूणानिधि आज भी रजति को आधिकारिक रूप से कनिमोई की अम्मा ही कहते हैं. पत्नी कहेंगे तो फँस जायेंगे. उन्होंने जब दयालु से विवाह रचाया था तब उनकी पहली पत्नी का देहांत हो गया था. दयालु से उन्होंने अपने माँ बाप के कहने पर विवाह किया. और फिर रजति से प्यार और तीसरी शादी. रजति से वह अब भी प्यार करते हैं और कनिमोई उनकी आँखों का तारा है. पर कनिमोई के लिए वह अड़गिरी या स्टालिन को नाखुश नहीं कर सकते क्यूंकि उनकी उम्र ढल रही है और यह दोनों भाई पार्टी लेकर उड़ सकते हैं या उसका विभाजन कर सकते हैं.
यही मुश्किल है दक्षिण के इस कद्दावर नेता के लिए. जिस पार्टी को उन्होंने अपने खून पसीने से सींच कर बनाया उसे कभी जनता की पार्टी नहीं होने दिया. पार्टी परिवार की संपत्ति रही. और उनका परिवार छोटा परिवार नहीं है, शायद इसीलिए सुखी परिवार नहीं है. मनमोहन सिंह सरकार में कौन क्या बनेगा, इसका समाधान तो कल हो जाएगा पर उगते सूरज के निशाँ वाली उनकी पार्टी का सूरज तमिलनाडू के आकाश पर कब तक चमकेगा, इस पर संदेह उनको भी है. राजनीति में आने से पहले करूणानिधि ड्रामों और फिल्मों के स्क्रिप्ट लिखा करते थे. आज जो स्क्रिप्ट उनके परिवार और पार्टी में लिखी जा रही है, इसका अंदाजा शायद उन्हें भी नहीं था. यह पिक्चर अभी बाकी है, दोस्त.
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