Thursday, February 19, 2009

America ka haath, Taliban ke saath

स्वात में जीत के दो दिन बाद ही पाकिस्तानी तालिबान ने अपना मंतव्य स्पष्ट कर दिया है. तहरीक-ए-निफाज़-ए-शरीअत-ए-मुहम्मदी के नेता सूफी मुहम्मद ने साफ़ कर दिया है की वह चाहते हैं इस्लामी कानून सिर्फ़ मालाकंद में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में लागू हो. पूरी दुनिया वाला सपना शायद पूरा न हो पर तालिबान के बढ़ते प्रभाव से लगता है पाकिस्तान उनके हाथ आ रहा है. जिस घुटनाटेक मसौदे को पाकिस्तानी हुक्काम शान्ति समझौता कह रहे हैं वह तालिबान के लिए खुला न्योता साबित हो सकता है. इस्लामाबाद में उसकी गूँज सुनने के लिए अब दुनिया को तैयार रहना पड़ेगा. अमेरिका ने इस समझौते में अपनी हामी दे दी है पर अमेरिका को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी.
तालिबान का शरीअत पैगम्बर मुहम्मद के आदर्शों का पालन कम और मुल्लों की मनमानी ज्यादा है. अब जिसे चाहें फांसी चढाएं और जिसे चाहें लुल्ला कर दें. पाकिस्तानी लोकतंत्र खड़ा देखेगा अपने अस्तित्व को तार-तार होता और ज़ाहिरन महिलाएं और बच्चे बनेंगे इसके सबसे बड़े शिकार. डेली टाईम्स को दिए अपने इंटरव्यू में मौलाना फरमाते हैं: "डेमोक्रेसी काफिरों ने हम पर थोपा था. इस्लाम चुनाव जैसी चीज़ों को कोई मान्यता नहीं देता. काफिरों ने अफगानिस्तान में एक आदर्श तालिबान सरकार को तोड़ दिया नहीं तो दुनिया के कई मुल्कों में वैसी ही आदर्श सरकारें होतीं." इस बयान के बाद भी अगर पाकिस्तान के कर्ता-धर्ता यह समझते हैं कि मौलाना और उनके दामाद फ़ज़लुल्लाह के नीयत पाक साफ़ हैं तो अल्लाह बचाए उनको तालिबानी मनमानी से.
यह मनमानी वह बहुत पहले शुरू हो चुका है. टीवी देखना मना है, लड़कियों के स्कूल उड़ा दिए गए हैं और औरतों का घर से बाहर निकलना बंद है. यहाँ तक कि अब गाडियां सड़क के बायीं तरफ़ नहीं बल्कि दायीं तरफ़ चल रही हैं. तालिबानी कठमुल्लों को किसी ने यह नहीं बताया कि इस नए ट्रैफिक नियम से वह अमेरिकी व्यवस्था लागू कर रहे हैं. दुनिया के अधिकतर देशों में गाडियां सड़क के दायीं और ही चलती हैं. ब्रिटेन और उसके कुछ पूर्व उपनिवेशों में गाडियां सड़क के बायीं तरफ़ चलती हैं. भारत और पाकिस्तान दोनों में ट्रैफिक की यही दिशा है. पर तालिबान के एक मुल्ला ने फरमाया कि बायीं तरफ़ गाड़ी चलाना इस्लाम के ख़िलाफ़ है और स्वात में उलट गए नियम. शरीअत का कैसा विश्लेषण यह लोग करेंगे इसका अंदाजा आप लगा सकते हैं.
पाकिस्तानी आर्मी तो भारत से मुकाबला करने का दंभ करती है तो फिर क्या हुआ कि उसने चंद हज़ार तालिबान लडाकों के सामने घुटने टेक दिए? कई लोग इसे पाकिस्तानी सेना की कमजोरी समझने की गलती कर रहे हैं. पाकिस्तानी सेना इसे अपना मजबूती समझती है. यह एक नयी सामरिक नीति है जो अमेरिका को चेताने के लिए की गयी है. राष्ट्रपति ओबामा ने लगातार यह संकेत दिए हैं कि वह पाकिस्तान की नकेल कसेंगे अगर पाकिस्तान ने तालिबान को शह दी. पाकिस्तान की तथाकथित चुनी गयी सरकार चाहे कोई भी राग अलापे, सेना ने अपनी ठोकी बजाई नीति को अपनाया है. कश्मीर में आतंकवादियों को शह देकर पिछले पच्चीस सालों से भारत को उलझा रखा है इस नीति ने. चूँकि अमेरिका ने अपना ध्यान इराक से हटाकर अफगानिस्तान में लगा दिया है सो अब अमेरिका को उलझाने की नीति का यह पहला पाठ है. जब तक अमेरिका उलझा रहेगा, पाकिस्तान को आर्थिक और सामरिक मदद मिलती रहेगी. आख़िर पर्यटकों को लुभाने में स्वात को पाकिस्तान में वही दर्जा प्राप्त है जो भारत में कश्मीर को. भारत के स्वर्ग को नर्क बनाने के लिए जी-जान एक कर दिया था इस्लामाबाद ने. अब पाकिस्तान के स्वर्ग में शरिया स्वर्ग के नाम पर नर्क बन गया है.
सेना को इसमें दो फायदे नज़र आ रहे हैं. शरीअत का लौलीपॉप दे कर मुहम्मदी-फजलुल्लाह को शांत कर दें और इस्लामाबाद को बचा लें. और अमेरिका को यह बता दें कि तालिबान नाम का हथियार पाकिस्तान के रिज़र्व में है. पर भूल शायद यहीं हुई हो. तालिबानी नेता बैतुल्लाह महसूद ससुर-दामाद जोड़ी की बात मानेंगे इसके आसार नहीं हैं. फिर यह शान्ति तूफ़ान के पहले की शान्ति बन सकती है. क्यूंकि केन्द्रशासित जनजातीय क्षेत्र (फाटा) में महसूद कि तूती बोलती है. ख़बर आई थी के बेनजीर का हत्यारा बैतुल्लाह महसूद किसी बीमारी से मर गया है पर उसकी पुष्टि नहीं हुई और फिर यह साबित हो गया कि वह ज़िंदा है और फजलुल्लाह, जिसे मौलाना रेडियो भी बुलाते हैं, से ज्यादा खतरनाक भी.
स्वात का समझौता अमेरिका को भले नागवार गुजरा हो पर पाकिस्तान ने उसे आश्वासन दिया है कि बगैर फजलुल्लाह को साथ लिए बैतुल्लाह से निपटना मुश्किल होता. अमेरिका ने बात मान ली की तालिबान से लड़ने के लिए उनको विभाजित करना बुद्धिमानी है. पर जो तालिबान रणनीतियों को समझते हैं वह जानते हैं कि मक्कारी में इन संगठनों का कोई मुकाबला नहीं. आई-सी-८१४ विमान अपहरण के घटनाक्रम को याद करें तो पता चलेगा कि तालिबान के दिखाने के दांत दो हैं, चबाने के चार और छकाने के हज़ार. अव्वल तो इस्लामाबाद को हाथ मिलाना नहीं चाहिए था, पर जिन हितों को जेरे नज़र रख यह किया गया वे पाकिस्तान के हित कम और सेना के स्वार्थ ज्यादा हैं. फजलुल्लाह और बैतुल्लाह का जेहाद लोकल नहीं ग्लोबल है. इस का खतरा अमेरिका तक को है. पड़ोसी होने के कारण भारत को उस से ज्यादा है. लेकिन सब से ज्यादा खतरनाक यह पाकिस्तान के लिए है. पिन खुला ग्रेनेड सबसे ज्यादा घातक उसके लिए होता है जिसके हाथ में हो. टाइमिंग थोडी बिगड़ी तो हाथ से हाथ धोना पड़ता है. उस हाथ में अमेरिका का हाथ अभी भी है. पाकिस्तान के उम्दा शायर अहमद फ़राज़ के शब्दों में:

तुम तकल्लुफ को भी इखलास समझते हो फ़राज़,
दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला!

2 comments:

Rakesh Singh - राकेश सिंह said...

Kamlesh Jee, aapka hindi main lekh dekh ke gad-gad ho gaya. Bahut sahi kaam kiya hai. Dhanyawad.

Rakesh (Kansas City, USA)

Parvez Sagar said...

बहुत खूब, हकीकत को कमतर शब्दों की माला मे पिरोना आसान नही होता। लेकिन आपने इस काम को बेहतरी के साथ अन्जाम दिया...... आपकी कलम सदा यूँ ही चलते रही। शुभकामनाऐं।
आपका

परवेज़ सागर