Monday, February 02, 2009

इब्न-ए-इंशा की ग़ज़ल और इब्न-ए-भजन की कहानी

(This could not have been written in English, so apologies to my non-Hindi readers.)


دیکھ ہمارے ماتھے پر یہ دشتِ طلب کی دھول میاں
ہم سے عجب ترا درد کا ناتا، دیکھ ہمیں مت بھول میاں

اہلِ وفا سے بات نہ کرنا، ہوگا ترا اصول میاں
ہم کیوں چھوڑیں ان گلیوں کے پھیروں کا معمول میاں

یونہی تو نہیں دشت میں پہنچے، یونہی تو نہیں جوگ لیا
بستی بستی کانٹے دیکھے، جنگل جنگل پھول میاں

یہ تو کہو کبھی عشق کیا ہے ؟ جگ میں ہوئے ہو رُسوا بھی؟
اس کے سِوا ہم کُچھ بھی نہ پوچھیں، باقی بات فضول میاں

نصب کریں محرابِ تمنّا، دیدہ و دل کو فرش کریں
سُنتے ہیں وہ کُوئے وفا میں آج کریں کے نزول میاں

سُن تو لیا کسی نار کی خاطر کاٹا کوہ نکالی نہر
ایک ذرا سے قصے کو اب دیتے ہو کیوں طُول میاں

کھیلنے دیں انہیں عشق کی بازی، کھیلیں گے تو سیکھیں گے
قیس کی یا فرہاد کی خاطر کھولیں کیا اسکول میاں

اب تو ہمیں منظور ہے یہ بھی، شہر سے نکلیں، رُسوا ہوں
تجھ کو دیکھا، باتیں کرلیں، محنت ہوئی وصول میاں

انشاء جی کیا عذر ہے تم کو، نقدِ دل و جاں نذر کرو
روپ نگر کے ناکے پر یہ لگتا ہے محصول میاں

ابنِ انشاء

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देख हमारे माथे पर ये दश्त-ए-तलब की धूल मियां
हमसे अजब तेरा दर्द का नाता, देख हमें मत भूल मियां!
-- इब्न-ए-इंशा

चाँद निकला दिल्ली में और चंडीगढ़ में फिजा ने रो रो के बुरा हाल किया है. उनके मियां ने दिल्ली से ख़बर भिजवाई है कि वे फिजा से उतना ही प्यार करते हैं जितना कि दस दिन पहले करते थे. पहली पत्नी सीमा से भी वो उतना ही प्यार करते हैं जितना फिजा से पहले. प्यार का समंदर है हमारा चाँद, कौन कहता है वो डुबकियां ले रहे हैं बहती हुई दरियाओं में. सच है कि फरहाद ने नहर खोद डाली थी इक शीरीं नार के लिए पर यह तो उनके भी चचा निकले. ख़ुद मुहब्बत के समंदर बने सर्व-धर्म सम्मलेन कर अपना भाव व्यक्त कर दिया. फिजा तो बेचारी बूझ नहीं पा रही कि किस संत का सान्निध्य उनके भाग्य में लिखा था. सान्निध्य थोड़े दिनों का सही पर भजनपुत्र के साथ कीर्तन करने का संयोग तो हुआ. योग हुआ और वियोग भी. पर दुनिया में मिलना-बिछड़ना तो होता ही रहता है. राधा का अनुराग तो अधूरा रह गया, कृष्ण ने विवाह तो प्रेम के लिए नहीं किया. अनुराधा का अनुराग तो निकाह तक पहुँचा. धर्म परिवर्तन करने से जहाँ विवाह आसान हो गया, वहां तलाक़ भी उतना ही आसान है. सच में इस्लाम इतनी आसानी का तलाक होने नहीं देता पर सुविधा के हिसाब से इस्लाम विवाह की भी अनुमति नहीं देता. अब जब राह आसानी की ली है तो फिजा को तीन बार तलाक़ तलाक़ तलाक़ बोल देंगे और फिर चाँद अपने पुराने आँगन में उग आयेंगे जैसे बबूल उग आता है किसी घर के पिछवाडे. इब्न-ए-इंशा कह गए:
सुन तो लिया एक नार की खातिर काटा कोह निकाली नहर
एक ज़रा से किस्से को अब देते क्यों हो तूल मियां!


फिजा तो कहाँ नेत्री बनने के सपने सजाये एक अभिनेत्री की तरह न सिर्फ़ बन-ठन कर इठला रही थी बल्कि अबने डायलाग भी रट रही थी. आख़िर चन्द्र मोहन ने प्यार को एक पड़ाव दिया था. यह पता नहीं था की ये मंजिल नहीं थी प्यार की. पड़ाव में ठहराव होता है पर उसे बसेरा बना लेना किसने कहा था. चाँद का दिल दरिया है और मन समंदर. आप आए तो आपको भी एक लोटा पानी मिल गया. अब खारापन तो समंदर की पहचान है. मुंह बनाने से समंदर गंगा नहीं हो जायेगा. वहाँ तो अमृत-भारी गंगा भी खारा हो जाती है. सीमा के पास वापस नहीं जाएँ तो भी समंदर किसी का नहीं हुआ. मर्द दो से ज्यादा औरतों को प्यार करते हैं, उनका बड़प्पन है, बड़ा दिल है. तिस पर नेता हों तो प्यार की कोई सीमा नहीं होती. सीमा से पूछिए.
अहल-ए-वफ़ा से बात न करना होगा तेरा उसूल मियां;
हम क्यूँ छोडें इन गलियों के फेरों का मामूल मियां


लोग तो कहते हैं की आपके पास ऐसे जंतर थे की आपने उसे अपना बना लिया वरना नेता लोग तो प्यार बाँटते फिरते हैं. हमारे बुजुर्ग नेता नारायण दत्त तिवारी बेचारे अभी भी अदालतों के सम्मन झेलते हैं. एक युवक इस बात की लड़ाई लड़ रहा है की उसे तिवारी बाप का नाम दें क्यूंकि वह पुत्र हैं उनके. सच तो तिवारी जी जाने पर पोपुलर आईडिया है यही के कई नेतागण ऐसे मामलों में रात गई बात गई से आगे नहीं जाते. भाई बदनामी होती है. पर कुछ तो था जंतर के चन्द्रमोहन आपके लिए चाँद मोहम्मद हो गए. पहाड़ न काटा हो, नहर न निकाली हो पर रास्ता तो निकाला ही. कहाँ सब उनको मुहब्बत के मसीहा मानने लगे थे. प्यार किया तो डरना क्या मुग़ल-ए-आज़म को बाद आप-दोनों की जोड़ी पर सब से ज्याद फबी. प्रेस कांफ्रेंस बुला कर आप और इब्न-ए-भजन प्यार की बहार में अखबार को सवालों का जवाब सवालों से देते थे. बकौल इब्न-ए-इंशा:
यह तो कहो कभी इश्क किया है, जग में हुए हो रुसवा भी
इसके सिवा हम कुछ भी न पूछें बाकी बात फिजूल मियां!


किसी ने तो आपके फ़साने पर फ़िल्म बनाने की घोषणा कर दी. लेकिन कहानी का ट्विस्ट देखिये की पिक्चर का दी एंड हो गया, पैक-अप हो गया तो उठिए और लौटिये घर. गोलियाँ लेकर लोटने से क्या होगा? मुहब्बत की झूठी कहानी पे रोये ठीक है पर सच्ची कहानियों में कब रोना नहीं आता मोहब्बत के अंजाम पर. लैला और मजनू की शादी नहीं हुई थी, न ही पहाड़ काटने वाले फरहाद की. आपके चाँद का कुछ सामान रह गया था आपके पास सो मिल गया और निकल लिए. थोडी रुसवाई होगी उन की पर मेहनत वसूल हो गई लगती है. आगे का शेर है:
अब तो हमें मंजूर है यह भी शहर से निकलें रुसवा हों;
तुझको देखा, बातें कर ली, मेहनत हुई वसूल मियां!


चन्द्र मोहन ने तो कह ही दिया है कि फिजा के आगे जहाँ और भी हैं, अभी इश्क के इम्तेहान और भी हैं. आपके लिए भी बहुत कुछ हैं सीखने को जो आपको ला स्कूल में नहीं बतायी किसी ने. अपने ख़िलाफ़ फ़ैसला ख़ुद ही लिखा है आपने, अब हाथ मल रहे हैं आप, आप बहुत अजीब हैं. आप देखें आगे क्या गेम होता है और खेलने दे उन्हें. बकौल इब्न-ए-इंशा:
खेलने दें इन्हें इश्क की बाज़ी, खेलेंगे तो सीखेंगे;
कैस की या फरहाद की खातिर खोलें क्या स्कूल मियां!


आपने सोचा था की चाँद की रौशनी में नहा कर आप निखरेंगी और दुनिया रीस करेगी. अब तारीकियाँ घेर रही हैं तो डर लगना लाजिमी है. चाँद ने अपना सब कुछ छोड़ दिया था आपके लिए. लोग तो कहते हैं छोड़ा नहीं था बचा रखा था आपसे. उनकी कोई फूटी कौड़ी है नहीं जो आपको मिलेगी. वह तो सब कुछ पारिवारिक सीमा के अन्दर ही छोड़ आए जब उन्होंने एक सीमा लांघी थी. चंडीगढ से आदमी जब पहाडों की ओर जाता है तो पहला नाका रूपनगर का आता है. वहीँ टोकन लेते समय पूछा जाता है की वन-वे दें या रिटर्न. उस नाके पर चन्द्र मोहन ने वापसी का टोल दे दिया था. आपके जोग में जोगी तो भये नहीं की वादियों में सुख मिल जायेगा. सो दिल-ओ-जान का महसूल नहीं दिया. आप अब चाहें जितना जान छिडकें, वो तो रूपनगर की तरफ़ गए ही नहीं.. पावर की प्रेयसी दिल्ली की ओर बढे सो कुछ देना नहीं पड़ा. आपकी कहानी अधूरी रह गई पर इब्न-ऐ-इंशा की ग़ज़ल पुरी किए देते हैं..

इंशा जी क्या उज्र है तुम को नकद-ऐ-दिल-ओ-जान नजर करो
रूपनगर के नाके पर ये लगता है महसूल मियां!

1 comment:

Unknown said...

उन वादों का क्या? जो कभी किए थे..
उन कसमो का क्या जो खाए थे...
सब रह जायेंगे...
ये सब झूठे थे..