लालगढ़ और आस पास के तथाकथित 'मुक्त' इलाकों को माओवादियों से मुक्त करवा लिया गया है. केंद्र और राज सरकारें राहत की सांस ले रही हैं. खून बहा पर उतना नहीं जितना डर था. पुलिस अपना पीठ थपथपा रही है और ऎसी उपलब्धि पर गर्व होना स्वाभाविक भी है. पर सब शायद जल्दी में हैं. गौरतलब है कि गाँव दर गाँव जब सुरक्षा बल पहुंचे तो वहां सिर्फ बूढे और महिलायें बचे थे, जो माओवादियों पर ज़ुल्म का आरोप लगा रहे थे और सुरक्षाबलों का धन्यवाद कर रहे थे. यह स्पष्ट नहीं है कि इनमें से कितने आदिवासी ऐसे थे जिनके हाथों में कल तक तीर और गंडासे थे और होठों पर माओवाद का नारा. और लालगढ़, रामगढ़ या पीरकाटा के सैकडों युवकों का क्या हुआ. आसमान या ज़मीन तो उन्हें लील नहीं गया, बल्कि वह माओवादियों के गुरिल्ला तकनीक में माहिर हो गए हैं.
गुरिल्ला युध्ध में पीछे हटना भी एक कला है वापस हमले के लिए. जब गुरिल्ला लड़ाके संख्या बल में कम होते हैं तो दुह्साहस और दंभ किनारे कर रिट्रीट कर जाते हैं. चे गुएवारा इस तकनीक को मांजा और तराशा, जिसका उपयोग कर विएतनाम के मुट्ठी भर वामपंथियों ने अमेरिका को पछाड़ा. दक्षिण अमेरिका से लेकर दक्षिण एशिया तक हिंसावादी वामपंथी इस का उपयोग करते हैं. माओवाद के सिपाही बड़ी लड़ाई से भागते हैं और छोटी लड़ाईयों में यकीन रखते हैं.
अब सुरक्षा बलों को ऐसी छोटी लड़ाईयों के लिए तैयार रहना पड़ेगा और राज्य और केंद्र की सरकारों को एक रास्ता निकालने में जिसमें लालगढ़ जैसे पिछडे इलाकों में प्रशासन और विकास का कोई गैर-सरकारी विकल्प ना तैयार हो सके. बातचीत का द्वार खुला रखते हुए, नाक्सालवाद से प्रभावित सभी सरकारों और केंद्र को एक समन्वय समिति तत्काल बनाना चाहिए, जो भारत के उत्तर से लेकर दक्षिण तक बने रेड कॉरिडोर में माओवाद के खात्मे के लिए युद्घ-स्तर पर काम करे. अब एक डन्दकारन्य नहीं रहा, लाल गलियारा फैलता जा रहा है. झारखण्ड में कुछ माओवादी नेताओं ने मुख्य-धारा में आने की कोशिश की है. सरकार अपने सूचना तंत्र को मजबूत कर ऐसे सभी लोगों को मनाये जो हिंसा की राह छोड़ना चाहते हैं और बदलाव के लिए वोट का रास्ता अपनाना चाहते हैं.
भारतीय माओवादियों को भारत के दुश्मन नचा रहे हैं. लिट्टे ने इन्हें ट्रेनिंग दी, उत्तरपूर्व के कई संगठन खुले आम इनसे हथियार देते लेते हैं. हाल में लश्कर के पकडे गए बड़े एजेंट ने खुलासा किया कि लश्कर-इ-तय्यबा भी इनको ट्रेनिंग दे रहा है. हथियार से चलने वाले आन्दोलन स्वयं हथियार बन जाते हैं या फिर हथियार इन्हें चलाते हैं. इनका किसी पंथ से सरोकार नहीं रहता.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
2 comments:
आपने सही कहा। नक्सलवादी आंदोलन भी अब भारत विरोधियों का हथियार बन चुका है। और इस तरह के उग्रवादी आंदोलन कारियों से निपटने के लिए एक ऐसा सैन्यबल बनाने पर भी विचार किया जाना चाहिए,जो केवल और केवल गुरिल्ला युद्ध से निपटने के लिए हो।
समय रहते अपनी सरकार माओवादियों को कोई उपाय या सार्थक हल नहीं निकालते तो उस भयावह दिन के लिए हमलोगों को तैयार रहना चाहिए जब लालगढ़ जैसी स्थिति आम हो जायेगी | वैसे अपने मनमोहन और मैडम की सरकार से इस बारे मैं आशा करना बेईमानी है | प्रतिभा जी राष्ट्रपती बनाने के लिए कितनी गहन मंत्र की अपने मैडम ने, लगता था जैसे अपने कलाम साहब इसके योग्य हे नहीं थे | खैर बीत गई सो बात गई, लेकिन वैसी मंत्रणा इस मोवादियिओं के हल के लिए क्यों नहीं ?
Post a Comment