Friday, July 17, 2009

दिल मिले या ना मिले

शर्म अल-शेख में भारत और पाकिस्तान के संयुक्त बयान में यह पहली बार हुआ कि साझे बयान में बलोचिस्तान में हो रहे हिंसा का जिक्र हो. पाकिस्तान के सबसे बड़े राज्य में अलगाववाद से पनपी हिंसा दशकों पुरानी है और कई बलोच संगठनों ने पाकिस्तानी सरकार की संप्रभुता को स्वीकार नहीं किया है. दूसरी तरफ पाकिस्तान कश्मीर में भारत के खिलाफ विद्रोह में सक्रिय रहा है. जब पाकिस्तान अपनी भूमिका से इनकार नहीं कर सकता तब वह भारत पर वैसे ही आरोप लगाना शुरू करता है और अक्सर बलोचिस्तान का नाम उछालता है. पर आज तक भारत पाकिस्तान के आधिकारिक वार्ता के बाद के किसी मसौदे या बयान में बलोचिस्तान नहीं आया. इस बार के वक्तव्य में कश्मीर शब्द नहीं है जो भारत-पाक कंपोजिट डायलोग का हिस्सा है. बलोचिस्तान का नाम संयुक्त वक्तव्य में आने से पाकिस्तान के अन्दर इसको एक विजय के रूप में देखा जा रहा है और पाकिस्तान इसका इस्तेमाल आधिकारिक रूप से विश्व पटल पर करेगा जहाँ वह बरसों से भारतीय आतंकवाद से पीड़ित होने का नाटक कर रहा है. अब उस के उन अनर्गल आरोपों को बल मिलेगा.

भारत ने ऐसा वक्तव्य जारी होने कैसे दिया, इस पर बहस होनी चाहिए और इस के पीछे क्या मजबूरियां थी, इस पर भी विचार होना चाहिए. भारत ने अपने कूटनीतिक ज़मीन का छोटा ही सही पर महत्वपूर्ण हिस्सा त्यागने का जो निर्णय लिया, उस के पीछे की सोच को उजागर होना ज़रूरी है. पाकिस्तान के कश्मीर राग को भारत ने नकारने के बाद स्वीकार कर लिया और अपने साझा बयानों में कश्मीर का जिक्र आम बात हो गई, जिसमें दोनों देश यह मानते थे कि यह एक ज्वलंत मुद्दा है और इसका समाधान शांति की दिशा में सबसे बड़ा कदम होगा. पर अब चूँकि भारत ने बलूचिस्तान को भी साझा मुद्दों में स्थान दे दिया है, दोनों देशों के बीच शांति के आसार और मुश्किल हो जायेंगे, क्योंकि यह जगजाहिर है कि बलोचिस्तान से भारत का कोई लेना देना नहीं है. फिर किस व्यक्ति या सोच ने बलोचिस्तान के रेफेरेंस को स्वीकार किया?

इस देश की माँओं ने अपने लाल खोये हैं, उनको जवाब चाहिए कि पाकिस्तान ने क्या किया है कि हम बात नहीं करने की कसम तोड़ने पर मजबूर हुए. आश्वाशन तो हमें अनगिनत मिले पर हमारी धरती पर बारूद और गोलियाँ बरसती रही, हमारे लोकल ट्रेन में, होटल और रेस्तरां में, हमारे बागों में बाज़ारों में बम फटते रहे और कश्मीर सुलगता रहा. चाँद दिनों पहले जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पाकिस्तानी राष्ट्रपति से मिले थे तो उन्होंने दो टूक कहा था कि जब तक आप आतंक के खिलाफ ठोस कार्रवाई नहीं करते हम आपसे बातचीत नहीं करेंगे. चार दिन पहले विदेश राज्य मंत्री प्रणीत कौर ने कहा कि पाकिस्तान आतंक के खिलाफ लड़ने के मामले में गंभीर नहीं है. फिर पाकिस्तान ने क्या किया इन चार दिनों में कि द्विपक्षीय संबंधों की काली रात पर चांदनी फ़ैल गई.

जिन मुद्दों पर भारत ने अपना रुख विश्व समुदाय के सामने स्पष्ट कर दिया था और विश्व समुदाय उन पर भारत के साथ खडा था, उन मुद्दों को यूं ही अचानक दरकिनार कर भारत क्या साबित करना चाह रहा है? इस लेन देन में भारत को क्या मिला अगर उस पर गौर करें तो यह एक हास्यास्पद त्रासदी सी दिखती है. पाकिस्तान ने कहा है कि वह भारत को खुफिया जानकारियाँ देगा और होने वाली आतंकी खतरों से आगाह करेगा. पर दोनों देशों के बीच गठित जोइंट टेरर मेकेनिजम की यही भूमिका थी. पाकिस्तान की प्रमुखतम खुफिया एजेन्सी ही तो भारत में आतंक फैलाने वाली केन्द्रीय संस्था है, वह कैसे हमें आगाह करेगी. अमेरिका और भारत दोनों ने इस बात को दुहराया है कि आईएसआई भारत के खिलाफ होने वाले गतिविधियों का केंद्र रहा है. पाकिस्तान ने यह भी कहा कि वह मुंबई हमलों के जिम्मेदार लोगों को सज़ा दिलाने का भरसक प्रयास करेगा. पर वह यह तो पहले भी कह चुका है, पर किया कुछ ख़ास नहीं. वह आसानी से इन सभी मामलों को एक लीगल केस बना कर उलझा सकता है जैसा कि उसने हाफिज़ सईद के मामले में किया है.

पर मनमोहन सिंह एक सुलझे राजनितिक हैं और कूटनीति में भी माहिर हैं. तो फिर यह मानने में गुरेज नहीं होना चाहिए कि उन्होंने जो कदम पीछे हटाये हैं, सोच विचार कर हटाये होंगे. पर वही सोच उन्हें देश को समझानी होगी. इस देश को अधिकार है जानने का क्योंकि इसने बलि दी है अपने बच्चों और जवानों की.

2 comments:

जगदीश त्रिपाठी said...

इसके पीछे क्या छुपा है। यह तो इस तरह के बयान पर दस्तखत करने वाले जानते होंगे। लेकिन आपकी यह बात सौ फीसदी सही है कि इससे हमारी कूटनीतिक अपरिपक्वता झलकती है। मेरा तो मानना है किइस देश के लिए शहादत देने वाले हजारों-हजार लोगों के साथ यह धोखा है।

Rakesh Singh - राकेश सिंह said...

बिलकुल सही कहा आपने |

* complete failure of foreign policy
* Quatrochi's release.
* Naveen Chawla's appointment.
* Cash for votes, during the Parliment confidence motion.
* Corruption (ex, Telecom scandal)
* Now abject surrender of Indian interests.
* Letting down heros and victims of mumbai
* Can't talk on any issue without consulting madam
................
इतने पे भी वो एक इमानदार और अच्छे कूटनीतिज्ञ कहलाते हैं | यही तो एक सुलझे राजनितिज्ञ की निशानी है |