ममता बनर्जी कभी निराश नहीं करती हैं. राजनीति में हो या रेल में आप ममता के कदमों की भविष्यवाणी कर सकते हैं. उनका रेल बजट देश ने जैसा सोचा था वैसा ही पाया. रेल या माल भाड़े में कोई बढोतरी नहीं, ढेर सारी नई ट्रेनें, बंगाल का ख़ास ख्याल आदि आदि. रेल अकेला ऐसा मंत्रालय है जिसका आम बजट से अलग बजट होता है और इसी लिए रेल मंत्रालय पाने के लिए इतनी मारामारी होती है. पूरा देश अपना पर अपना राज्य सबसे पहले की नीति सभी मंत्री अपनाते हैं, और ममता ने पुरे देश पर दृष्टि की जिम्मेदारी पिछले कई मंत्रियों से बेहतर निभाया है. कुल मिलाकर यह लोक-लुलोभी रेल बजट अच्छा है, देश के लिए, भारतीय रेल के लिए. ममता ने लालू के राज की पोल खोली पर लालू की तरह लोक-लुभावन योजनायें लाने से नहीं चूकीं. पर कुछ आधारभूत मुद्दे हैं जो ममता बनर्जी भी नज़रंदाज़ कर गईं.
रेलवे की आधारभूत संरचना पर जोर और बढ़ गया है पर उसके संवर्धन के लिए कोई जोर नहीं लगाना चाहता, क्योंकि उस से कोई राजनितिक स्वार्थ पूरा नहीं होता हर बजट में नई ट्रेनों का एलान हो जाता है और इस बार भी 57 नई ट्रेनें चलाने की घोषणा कर दी गई पर ये सब ट्रेनें उन्हीं पटरियों पर दौडेंगी जिन अभी ही काफी बोझ है. पुलें जर्जर हैं और पटरियों की हालत खस्ता है, जो न सिर्फ गाड़ियों की रफ़्तार पर रोक लगा रही हैं बल्कि दुर्घटनाओं का कारण बन रही हैं. इस रेल बजट में फिर नेटवर्क ने नवीनीकरण के बारे में कुछ नहीं है.
एक महत्वपूर्ण बात ममता बनर्जी ने कही इज्ज़त के बारे में. और उन्होंने गरीब लोगों को पच्चीस रुपये में १०० किमी की दूरी तक महीने भर यात्रा की सुविधा दी. पर आजादी के बासठ साल बाद भी सामान्य श्रेणी के डिब्बों में लोग लकड़ी के पट्टों पर बैठ कर सफ़र करते हैं. डिब्बा चाहे आरक्षित हो या अनारक्षित, बैठने के लिए मुलायम सीट का ना होना सामान्य श्रेणी में बैठने वालों को उनकी औकात दिखाने जैसा है. छूट ना दो, सोने की जगह ना दो पर रेक्सीन का ही सही सीट कवर होना अनिवार्य होना चाहिए. लालू के बाद ममता ने भी ग्रीन टॉयलेट की घोषणा की है, देखना है यह कब तक हो पाता है. भारत के रेलवे स्टेशनों पर देर से आ रही गाड़ियों का इंतज़ार लोग अपनी नाक पर रुमाल रख कर करते हैं. सारे स्टेशन मानव मॉल से पटे पड़े रहते हैं. यह काम बहुत पहले हो जाना चाहिए था, और आशा है ममता बनर्जी का एलान कागजों से पटरियों तक जाएगा.
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2 comments:
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