बजट आ गया. अगर यह एंटी-क्लाइमेक्स था तो दोष प्रणब मुख़र्जी को मत दीजिये. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बजट के बाद अपनी प्रतिक्रया में कहा यह बजट भारत और इंडिया के बीच की दूरी को कम करने के लिए उठाया गया कदम है. आपके लिए घरेलु बजट का बैलेंस बिगाड़ने वाली महंगाई सबसे बड़ा आर्थिक मुद्दा रहा हो पर सरकार के लिए बैलेंस बजट का मतलब है देश के आर्थिक हितों और अपने पार्टी की राजनितिक हितों के बीच बैलेंस बनाना. और अगर इस तराजू पर प्रणब मुख़र्जी के २००९-२०१० बजट को तौलें तो यह बजट कांग्रेस के प्रतिस्पर्धी पार्टियों पर भारी पड़ेगा.
कांग्रेस और बीजेपी दोनों द्वि-दलीय व्यवस्था की ओर जाना चाहते हैं और छोटे दलों को पंख कतरना चाहते हैं. वह दल जो एक राज्य की राजनीति करते हैं पर केंद्र में सत्ता की हिस्सेदारी चाहते हैं क्योंकि छोटी पार्टियों के समर्थन के बिना सरकार बनाना मुश्किल हो गया है. इन पार्टियों का वोट बैंक मुख्यतः ग्रामीण है और उस पर कांग्रेस ने धावा बोल दिया है. राजनीतिक पार्टियों को उद्योगपति चंदा देते हैं पर यह सब पिछले दरवाज़े से होता आया है. इस बजट में पहली बार इस लेने-देने को सामने लाने का प्रयास किया गया है. पार्टियों को दिए गए चंदे पर कोई टैक्स नहीं लगेगा. इसका फायदा कांग्रेस और बीजेपी को मिलेगा, और छोटी पार्टियों को नुक्सान होगा.
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1 comment:
सर, कांग्रेस या भाजपा भले ही यह मान लें देश में चेक और बैलेंस वाली वेस्ट मिंस्टर प्रणाली आकार ले रही है। इस लिए वे कोशिश करेंगी ही कि राजनीति दो दलों के इर्द-गिर्द घूमे, इसलिए छोटे दलों के पर कतर दिए जाएं । लेकिन अपने देश की प्रवृत्ति ही ऐसी है कि ऐसा होगा नहीं ।
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